संक्रान्ति का अर्थ है, ‘सूर्य का एक राशि से अगली राशि में संक्रमण (जाना)’। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है।इस दिन, सूर्य मकर रेखा (दक्षिणायन) से कर्क रेखा (उत्तरायण) की ओर बढ़ता है।
पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं।सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है।सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है, मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।तमिलनाडु में इसे पोंगल कहा जाता है। असम में इसे माघ बिहू और भोगल बिहू के नाम से मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा राज्यों में इसे लोहड़ी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी या दान पर्व के रूप में मनाया जाता है। बिहार में इसे तिल संक्रांति या खिचड़ी पर्व के नाम से जाना जाता है।
पर्व एक है पर इसको मनाने की परम्पराएं अलग-अलग हैं। इस पर्व के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है। विशाल भारत की विविधताओं में अन्तर्निहित एकता और अखण्डता का अनुपम उदाहरण है मकर संक्रांति।
इस त्योहार का उल्लेख हमारे कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है जो इस त्योहार के धार्मिक महत्व के बारे में बताते हैं। धार्मिक ग्रंथ, “गीता” जिसे भगवान कृष्ण की वाणी के रूप में जाना जाता है, यह दर्शाता है कि उत्तरायण के छह महीने देवता का समय है और दक्षिणायन के छह महीने देवताओं की रात्रि होती है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में अपने शरीर को त्यागता है उसे ‘कृष्ण लोक’ में स्थान प्राप्त होता है। उस व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है, जबकि दक्षिणायन में मरने वाले को पुनर्जन्म लेना पड़ता है।
महाभारत काल में भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भी उन्होंने दक्षिणायन में अपने प्राणों का त्याग नहीं किया और सूर्य के उत्तरायण में जाने की प्रतीक्षा करते रहे। ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है तो भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग दिया था।
मकर राशि शनि की राशि है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य शनि की राशि में प्रवेश करता है। सूर्य देव शनि के पिता हैं। पिता अपने बेटे से मिलने उसके घर जाता है। शनि और सूर्य दोनों ही पराक्रमी ग्रह हैं जिनकी शुभ कृपा से मनुष्य बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है। इसलिए मकर संक्रांति के पावन पर्व पर लोग सूर्य और शनि को प्रसन्न करते हैं।
‘मकर’ का अर्थ है शीतकालीन समय अर्थात ऐसा समय जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे नीचे होता है। और ‘संक्रांति’ का अर्थ है गति। मकर संक्रांति के दिन राशिचक्र में एक बड़ा बदलाव आता है। इस खगोलीय परिवर्तन से जो नए बदलाव होते हैं उन्हें हम धरती पर देख और महसूस कर सकते हैं। ये समय आध्यात्मिक साधना के लिए भी महत्वपूर्ण है। तमाम योगी, साधक एवं श्रद्धालु इस अवसर का उपयोग अपनी आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए करते हैं। सनातन परंपरा में महाकुम्भ, कुम्भ, अर्ध कुम्भ और मकर संक्रांति के स्नान का भी बड़ा महात्म्य है।इसलिए मकर संक्रांति पर खासतौर से गंगा स्नान करने को श्रद्धालु माँ गंगा के पावन तट पर उमड़ पड़ते हैं फिर चाहे वो हरिद्वार हो, संगम तट प्रयागराज या मोक्षदायिनी काशी सभी जगह भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है।
संक्रांति शब्द का मतलब हमें पृथ्वी की गतिशीलता के बारे में याद दिलाना है, और यह एहसास कराना है कि हमारा जीवन इसी गतिशीलता की देन है और इसी से पोषित और संवर्धित भी। कभी सोचा है आपने अगर यह गति रुक जाए तो क्या होगा? अगर ऐसा हुआ तो जीवन संचालन से जुड़ा हर आयाम ठहर जाएगा।मकर संक्रांति को अनेक स्थानों पर पतंग महोत्सव मनाए जाते हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। रामचरित् मानस के बालकाण्ड में श्री राम के पतंग उड़ाने का वर्णन है- ‘राम इक दिन चंग उड़ाई, इन्द्र लोक में पहुंची जाई।’ बड़ा ही रोचक प्रसंग है। पंपापुर से हनुमान जी को बुलवाया गया था, तब हनुमान जी बाल रूप में थे। जब वे आए, तब ‘मकर संक्रांति’ का पर्व था, संभवतः इसीलिए भारत के अनेक नगरों में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने की परम्परा है।
यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अतः पतंग उड़ाने का एक उद्देश्य कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना भी है।
मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान, सूर्योपासना व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान विशेष पुण्यकारी होता है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।मकर संक्रांति के दिन तिल का बहुत महत्व है। कहते हैं कि तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रांति का पुण्य फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं।मकर संक्रांति का पर्व इस बात का भी उद्घोष है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर स्थिरता का एहसास हो।यद्यपि मकर संक्रांति सम्पूर्ण मानवता के उल्लास का पर्व है क्योंकि विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और सर्वे भवन्तु सुखिनः की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है।अतैव मकर संक्रांति जीवन की गतिशीलता के आनंद का उत्सव कहना सर्वथा उपयुक्त है।
डॉ.पवन शर्मा