कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
टनल में फंसे हैं मजदूर जिनको पन्द्रह दिनों की कवायद के बाद भी नहीं निकाला जा सका । हो सकता है कि जब तक यह आलेख छपे तब तक वे निकल जायें । ईष्वर ऐसा ही करे । पर टनल में मजदूरों के फंसने और एक लम्बी कवायद ने यह तो समझा ही दिया है हमें कि बेतरतीब विकास मानव कों भले ही सुविधा दे पर विनाश का कारण ही बनता है । हमने देवभूमि उत्तराखंड को बहुत ही बरबाद किया है । सुविधा के नाम पर विकास विनाश की ओर ही ले जाता है हमे अब यह देखना और सोचना होगा कि हमंे विकास क्या शर्तें तय करनी हैं । देवभूमि ही क्यों सारे देश में अमूमन ऐसे ही हालात हैं । निरंतर होने वाले भूस्खलन इसके उदाहरण है जिनमें न केवल जन हानि होती है वरन धन हानि भी होती है । पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है अब परिणाम तीन दिसम्बर को आने वाला है । भारत में लोकतंत्र का यह महापर्व लगभग हर साल चलता है । किसी न कसी राज्यों में चुनाव होते ही रहते हैं । एक लम्बी कवायद करनी होती है राजनीतिक दलों को और उनके नेतओं को । मतदाता को यह समझाना जरूरी हो गया है कि उन्होने आपके लिए अभी तक क्या-क्या किया है और भविष्य में क्या-क्या करने वाले हैं । वैसे तो अब डिजिटल युग का जमाना है मतदाता हर एक गतिविधियों से स्वतः ही परिचित हो चुका है । उसे किए गए कार्यो के प्रति इतनी रूचि है भी नहीं, वैसे तो उसे भविष्य में किए जाने वाले कार्यों को जानने की रूचि भी नहीं है उसे केवल अब क्या-क्या फिरी में मिलेगा यह जानना है । जिनको मिलेगा उनको उत्सुकता रहती है और जिनको नहीं मिलेगा उनको बैचेनी रही है । सरकार गर्व से कहती है कि हम 80 करोड़ भारतवासियों को मुफ्त में राशन दे रही है यह बात वो गर्व से बताती है । तो क्या यह वाकई गर्व करने वाली बात है कि एक सौ चालीस करोड़ की आबादी वाले भारत में अस्सी करोड़ फिरी का राशन लेकर अपना पेट भर रहे हैं । वो भी पिछले चार-पांच सालों से और आगामी चार-पांच सालों तक । मतलब स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हाने वाला फिर किस विकास की बात की जायें । जब हम अपने ही देशवासियों को इस काबिल नहीं बना पा रहे हैं कि वे दो जून की रोटी अपने बलबूते पर खा सकें तो हमारे सारे विकास और इन विकास के लिए किए गए वायदे झूठे ही तो हुए । चुनाव में अब फिरी में क्या-क्या दिया जा सकता है इसकी घोषणा होती है । वह वर्ग जो काम करके दो जून की रोटी कमाता था अब केवल सरकारी योजनाओं के बलबूते पर अपना जीवन चला रहा है । उसे कामकाज करने से कोई मतलब नहीं सब कुछ सरकार तो दे रही है । राजनीतिक दल प्रतिस्पर्धा में अब रेट बढ़ाते जा रहे हैं । प्रदेश की सरकारें महिलाओं को घर-बैठे हजारों रूप्या देने की घोषणा कर रही हैं । उन्हें अब काम करने के लिए उत्साहित नहीं किया जा रहा है आप तो घर बैठो आपका भैया, आपका मामा आपको पैसे देगा । क्या यह शर्मनाक नहीं है ? देश की अर्थ व्यवस्था तो काम काजी लोगों से ही सुधर सकती है पर अब हम अपने कामकाजी लोगों को पंगु बना रहे हैं । वे काम नहीं करेगें हम उन्हें रोजगार के अवसर नहीं दे रहे हैं हम उन्हें केवल पैसा दे रहे हैं । करोड़ों अरबों रूपया यूं ही दिया जा रहा है । ऐसे में काम करने के लिए मिलों में करीगर कहां से मिलगें । उद्योग कैसे संचालित होगें ? इससे किसी को कोई मतलब नहीं है । उन्हें वोट चाहिए किसी भी शर्त पर वोट चाहिए । हमारे संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को फिरी करो तो ठीक है । उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य आवास दो वो ठीक है पर घर बैठाकर पैसे दो इसे तो कोई भी उचित नहीं मान सकता । चिन्तन करने की आवष््रयकता है पर जिन्हें चिन्तन करना है वे और क्या-क्या फिरी दिया जा सकता है इस पर चिन्तन करने लगे हैं । पांच राज्यों के चुनाव भी इसी पैटर्न पर हुए । विकास की बात नहीं हुई होनी भी नहीं थी जो बातें हई वे संकल्पों की हुई हम इतने में गैस सिलेन्डर देगें हम इतने रूपया महिना फिरी में देगें । जिनको मिलना है उन्होने कौन ज्यादा देगा के आधार पर वोट दिया होगा और जिनके पैसों से यह सारा कुछ दिया जाना है उन्होने बड़बड़ाते हुए कौन कम देगा को वोट दिया होगा । न देने वाले का कुछ जा रहा है और न लेने वाले का जिसका कुछ जा रहा है वह क्रोध में है पर वोट तो देना ही है । उसके आकोश के कोई मायने नहीं रह गए हैं । टैक्स आपको देना ही होगा सीधे नहीं तो टेढ़े आप टैक्स देगें वो निःशुल्क योजना चलायेगें । पांच विधानसभा के हजारों प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला अब इवीएम के हवाले हो चुका है । अभी कयास लगाये जा रहे हैं कौन जीतेगा । मतदान प्रतिशत अच्छा रहा । आम मतदाताओं में जागरूकता तो आई है । अब वह वोट करना ही चाहता है । सोशल मीडिया ने जागरूकता बढ़ा दी है । फिर भी अभी इतनी नहीं बढ़ पाई कि हम कह सकें कि शत-प्रतिशत मतदान हुआ है । पर हो जायेगा ऐसा भी । राजनीतिक विशलेषक इस बढ़े हुए मतदान के जो भी कयास निकाले कि वो सत्तारूढ़ दल के खिलाफ गया है या उसके पक्ष में पर सच तो यही है कि यह केवल जागरूकता का ही परिणाम है । लोगों ने वोट दी है तो किसी न किसी को तो दी ही होगी जो जीत जायेगा उसे पांच साल का सुखचैन मिल जायेगा । दीवाली सालभर में एक बार आती है और हम इस बहाने घर की साफ-सफाई कर लेते हैं पर चुनाव पांच साल में एक बार आते हैं तो यह सफाई पांच साल में एक बार ही हो पाती है । सफाई के परिणाम आयेगें । इस बार चुनाव में यह तय कर पाना कठिन हो रहा है कि कौन सी पार्टी जीतेगी । संभवतः यह भी जगारूकता का ही परिणाम है । मतदाता वोट कर आता है और हर एक को भ्रम में रखे रहता है ‘‘आपको ही वोट दी है’’ वह मुस्कुराता हुआ कहता है । उसकी मुसकान के पीछे छिपे भावों को कोई नहीं पढ़ सकता । केवल मतगणना के बाद ही दिखाई देता है वो तो तब भी कहता है ‘‘वोट तो आपको ही दी थी’’ । राजनीतिक दल असमंजस में हैं । सर्वे करने वाले हंडिया से एक चावल निकालकर अंदाजा लगा रहे हैं और जिन्होने वोट दी है वह अपने काम में लग चुका है । इन विधानसभाओं के परिणाम आयेगें फिर लोकसभा के चुनावों की तैयारी प्रारंभ हो जायेगी । लोकसभा चुनाव भी अप्रेल से लेकर मई तक चलेगें । अभी किसी के पास आराम करने को समय नहीं है । आम मतदाता भी जो कुछ शेष रह जायेगा उसे लोकसभा में भंजा लेगें के मूड में है उसे भरोसा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय स्तर की फिरी योजना की घोषणा होगी । उसे परिणामों की कोई उत्सुकता नहीं है उसे उत्सुकता है केवल घोषणाओं की ।