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गांधार की मचलती हवाएं -DR KAMINI KAMAYANI

प्रत्यंचा गांधार की मचलती हवाएं और /थिरकते इन्द्रधनुषी सपनों पर, अचानक वज्रपात करते/ हे / पितामह (भीष्म) तुझे तनिक भी हिचक न हुई । अपने जनक के अरमानों के लिए स्वयं की इच्छाओं का चिता जलाने वाला एक सामान्य अबला नारी के लिए क्यों इतना निर्मम, नि:क्षत्र हो गया ? युद्ध में जीती/पराजित /नरेश की…

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उम्र की सच्चाई-जय प्रकाश भाटिया

इतनी लम्बी उम्र मिली है , पर जीने का वक़्त नहीं, रिश्तों की भरमार है पर रिश्तों का अस्तित्व नहीं , चेहरे पे मुस्कान सभी के, दिल में क्या है स्पष्ट नहीं, झूठी तारीफों के पुल पर , सच्चाई का वक्तव्य नहीं, जेब की दौलत लुटवाओ तो, यारों की है लाइन लगी, पर मुश्किल में…

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