कर लें एक मुट्ठी राख को महकाने की तैयारी”
चाह मिटे चिंता मिटे मन हो बेपरवाह जिसे कुछ नहीं चाहिए वही शहनशाह d आज की प्रबुद्ध पीढ़ी हो युवा पीढ़ी हो या शैशवकाल में पल रहा बचपन, शायद ही कोई एैसा इँसान होगा जिसने कबीर जी की वाणी को न पढ़ा हो। ये भी सच है कि एैसे भी कुछ विरले ही इँसान होंगे…