(सोनल सिन्हा फाउंडर – MyBhkFlat)
इन दिनों पूरा विश्व कोरोना के संकट से जूझ रहा है। सच तो यह है कि विकसित और विकाशशील दोनों ही तरह के देश इसके शिकार हैं। यह किसी भी देश के लिए हरेक मुद्दे पर एक बहुत बड़ी परेशानी का सबब बन चुका है। आज दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री इस बात को मान रहे हैं कि इसका सबसे ज़्यादा नुकसान किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है। इसमे कोई दो राय नहीं कि हमारी सरकार इस महामारी को दूर करने के लिय हर संभव उपाय कर रही है और सफलता के संकेत भी मिलने लगे हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में “जान भी जहान भी” के मुद्दे पर जोर दिया था। इस स्लोगन का आशय यह है कि आर्थिक चिंताओं को अनिश्चितकाल तक नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता बल्कि गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप हुई हानि की क्षतिपूर्ति के लिए बहुत तेज़ गति से आगे बढ़ने की ज़रूरत भी है।
जैसा कि हम सब जानते है, हाउसिंग सेक्टर का भारत की अर्थव्यवस्था में काफी अहम भूमिका है। हाउसिंग सेक्टर में मंदी का असर इससे जुड़े सेक्टरों पर भी पड़ा है। अब समय आ गया है कि इस सेक्टर को फिर से पटरी पर लाने के लिए कठोर कदम उठाये जाए।
दशकों से, यह सेक्टर असंगठित रूप से काम करता रहा है। इसके परिणामस्वरूप लाल फीताशाही, बढ़ती हुई लागत, पोससेशन में होने वाली देरी को बढ़ावा मिलता रहा है। इसमे कोई दो राय नहीं है कि इस सेक्टर की भूमिका और उसके प्रभाव से हम सब अवगत हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उन तमाम मंजूरियों की कतार का है जो एक हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक हैं। वर्तमान सन्दर्भ में इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हाउसिंग प्रोजेक्ट के प्रकार, स्थान और आकार के आधार पर विभिन्न एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली आवश्यक मंजूरियों की संख्या घटाई जा सकती है।
आज सिंगल विंडो क्लीयरिंग परियोजना पर जल्द से जल्द कार्य करने की ज़रूरत है जिसके परिणामस्वरूप किसी भी आवास परियोजना में होने वाली महीनों की देरी से निज़ात पाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारत में एक औसत हाउसिंग प्रोजेक्ट के पूरा होने तक लागत में २०% तक कि कटौती हो सकती है। विश्लेषकों की राय में मिलने वाले लाभ की मात्रा या मूल्य अलग-अलग हो सकते है पर इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसे उपाय लाभकारी सिद्ध होंगे।
स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन पर एक बार फिर से विचार करने की ज़रूरत है। अगर देखा जाए तो औसतन राज्यों में स्टाम्प डयूटी और रजिस्ट्रेशन के कारण रियल एस्टेट के लेनदेन की लागत में लगभग ५-८ प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है। हालांकि सरकारी राजस्व में इसका पर्याप्त योगदान होता है पर ऐसी उच्च लागत अक्सर डेवेलोपेर्स को उपभोक्ताओं के लिए एक उचित मूल्य की पेशकश करने से रोकती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि एक उपभोक्ता के लिये यह अतिरिक्त लागत अपार्टमेंट खरीदने की उसकी चाहत पर एक विराम लगा देती है और उसका सपना पूरा नहीं हो पाता। आज ज़रुरत इस बात की है कि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा स्टांप ड्यूटी को माफ करने, कम करने या पुनर्गठन करने के लिए कदम उठाये जायें ताकि रियल एस्टेट सेक्टर में फिर से जान फूंकी जा सके। इससे आवास की कीमत सस्ती होगी और डेवेलोपेर्स भी अच्छे मूल्य पर उपभोक्ताओं को घर दे पाएँगे जिससे आवास की बिक्री भी बढ़ेगी।
अगर हम माइक्रो इकोनॉमिक्स के डिमांड लॉ की बात करें तो कीमत और मांग हमेशा विपरीत दिशा में आगे बढ़ती है। दूसरे शब्दों में कहें तो कीमत कम, मांग ज्यादा।
ऊपर दिए गए दो उपाय संभावित रूप से उन लागतों के एक चौथाई हिस्से को बचा सकते हैं जो वर्तमान में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में आते है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लागत में इतनी कमी आवास की मांग के लिए एक बड़े बूस्टर के रूप में काम करेगी और रियल एस्टेट से जुड़े अन्य सेक्टर को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी। अब, जबकि अर्थव्यवस्था एक ठहराव पर आ गयी है, रियल एस्टेट सेक्टर को फिर से शुरू करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है।