मानव गलतियों का पुतला होता है ऐसा आप सबने जरूर सुना होगा किन्तु मानव जो भी गलतियां करता है उसके पीछे या तो उसकी अपनी मजबूरी होती है या उसका अपना बनाया दकियानूसी सिस्टम ! जी हां ! आज मै एक पत्रकार और लेखक होने के नाते जिस मुद्दे को आपके सामने उठाने जा रहा उसे पढ़कर निश्चित ही आप सोच में पड़ जाएंगे कि क्या वास्तव में गलतियों के पीछे केवल इंसानी सोच होती है अथवा ये पूरा सामाजिक तानाबाना या ये पूरा न्याय तंत्र ? उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले के विष्णु तिवारी को निर्दोष होते हुए भी दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में 19 साल तक जेल में काटना पड़ा बाद में जांच से पता चला विष्णु निर्दोष था , उसके पास अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 19 साल तक ना आर्थिक क्षमता रही ना सामाजिक सहायता । अब जब पूरा मामला खुला तो मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है। आगरा के मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस की शिकायत पर मुख्य सचिव और डीजीपी उत्तर प्रदेश को पत्र लिखा गया है, जिसमें दोषपूर्ण विवेचना हेतु विवेचक पर कार्रवाई और पीड़ित को मुआवजा दिलाने की बात कही गई है। मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने अपने पत्र में लिखा कि ललितपुर के थाना महरौली के गांव सिलावन के रहने वाले विष्णु (46) पुत्र रामेश्वर के खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। वर्ष 2003 में आरोपी को केंद्रीय कारागार आगरा में स्थानांतरित किया गया था।पिछले दिनों विष्णु को हाईकोर्ट ने निर्दोष करार दे दिया। वह 19 साल से जेल में थे। इस अवधि में उनके माता-पिता के साथ दो भाई की मौत हो गई। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से विष्णु अपने केस में पैरवी नहीं कर पाए थे। बाद में विधिक सेवा समिति की ओर से मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था।
एक अन्य मामले के आरोप पत्र में बासौनी के पति-पत्नी को हत्या के मामले में जेल भेजने का भी जिक्र किया गया। वह पांच साल से जेल में बंद थे। एक महीने पहले दोनों निर्दोष पाए गए। कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों को बच्चों के लिए भटकना पड़ा। बमुश्किल उन्हें बच्चे मिल पाए थे। बच्चों को अनाथालय में रहना पड़ा था। नरेश पारस ने पत्र में गलत तरीके से चार्जशीट लगाने वाले पुलिसकर्मी पर कार्रवाई की मांग की है। इसके साथ ही कहा है कि पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए। धनराशि विवेचना में लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों से ली जाए ।कहा जाता है भले ही दोषी को सजा मिलने में वक्त लगे लेकिन एक निर्दोष को कभी सजा नहीं होनी चाहिए क्योंकि उसे व उसके परिवार वालों को जो तिरस्कार झेलना पड़ता है उससे न जाने कितनी जिंदगियों का जीना मुश्किल हो जाता है, ऐसा ही कुछ हुआ यूपी के विष्णु तिवारी के साथ । एक दलित महिला का बलात्कार करने का आरोप जब 18 वर्षीय विष्णु तिवारी पर लगा तो साथ ही एससीएसटी एक्ट के तहत भी कार्रवाई की गई और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई, 19 साल 3 महीने 3 दिन में एक निर्दोष शख्स ने क्या क्या खोया इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है, पूरा परिवार इस केस की वजह से बदमानी का दुख झेलते झेलते जिंदगी की जंग हार गया । अब जब विष्णु तिवारी जेल से वापस लौटे तो उन्हें घर में छोटे भाई का परिवार व विधवा भाभी की तंग हालत दिखी, वह बताते हैं उन्हें कभी जमानत तक नहीं मिली, केस लड़ते हुए 5 एकड़ जमीन भी चली गई । जेल में उनके पिता की मौत की खबर उनसे छिपाई गई । उत्तर प्रदेश के ललितपुर निवासी विष्णु तिवारी आज निर्दोष साबित होने पर खुशी नहीं मना पा रहे हैं क्योंकि कानून की लापरवाही ने उनसे इतना कुछ छीन लिया है कि जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती है ।
महरौली कोतवाली के अंतर्गत सिलावन ग्राम के इस मामले ने लोगों का गुस्सा, SC/ST एक्ट का दुरुपयोग करने वालों पर उतर रहा है । पिता रामेश्वर प्रसाद तिवारी, बेटे को जेल होने के बाद सदमे में थे फिर उन्हें लकवा हो गया और उनकी मौत हो गई, बड़े भाई दिनेश तिवारी की मौत हुई फिर हार्ट अटैक से भाई रामकिशोर तिवारी की मौत हुई और फिर सदमे से मां का भी स्वर्गवास हो गया । इतनी दयनीय हालत देखकर भी हमारे तंत्र का दिल नहीं पसीजा । विष्णु ने कहा कि 19 साल में सबकुछ उजड़ चुका है। साल 2014 में पिता की मौत हो गई थी। एक साल बाद मां ने भी बीमारी से दम तोड़ दिया था। इसके बाद बड़े भाइयों राम किशोर और दिनेश की भी मौत हो गई। पिता की मौत के बारे में गांव के परिचित ने पत्र भेजकर बताया था। लेकिन मां व दो भाइयों की मौत का पता तीन साल बाद चला था। साल 2018 में छोटा भाई महादेव जेल में मिलने आया तो उसी ने बताया था कि अब मां नहीं रही। नाइंसाफी की हद है कि किसी के भी अंतिम संस्कार के लिए विष्णु तिवारी को बेल नहीं मिली ।अब समाज सवाल करता है कि क्या कानून उनके 19 साल वापस लौटा सकता है ? एक आपसी रंजिश ने विष्णु तिवारी से उसकी जवानी, परिवार छीन लिया, उनके व परिवार के लिए भारी मुआवजे की मांग की जा रही ताकि वह बची जिंदगी सुख चैन से बिता सकें, कहते हैं कानून अंधा होता है, कभी-कभी ऐसे व्यक्ति को सजा मिल जाती है, जिसने गुनाह किया ही नहीं होता। ऐसे हालात में उसे अपनी बेगुनाही साबित करने में एक लंबा वक्त गुजर जाता है। इस बीच वह बहुत कुछ खो चुका होता है, यहां तक कि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीविका के संसाधन भी खत्म हो चुके होते हैं।
विष्णु तिवारी का मामला एक अकेला मामला नहीं है । यदि हम जातिवाद से ऊपर होकर सोचे तो हमारे न्याय तंत्र में खामियां है , हमारा समाज तंत्र दूषित है जिसे समय रहते शुद्ध कर लिया जाना चाहिए । ऐसी ही दूसरी घटना यूपी के आगरा जिले के रहने वाले एक दंपति के साथ हुई। यहां एक दंपति को बिना किसी अपराध के पांच साल तक जेल की सजा काटनी पड़ी। आगरा के बाह तहसील स्थित जरार क्षेत्र में रहने वाले इस दंपति पर मुसीबतों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब इसी क्षेत्र में रहने वाले योगेन्द्र सिंह के पांच साल के बेटे रंजीत की हत्या हो गयी, जिसका आरोप योगेन्द्र सिंह ने पड़ोस में रहने नरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी नजमा पर लगाया। नरेंद्र और नजमा अपनी जीविका चलाने और बच्चों का पालन पोषण करने के लिए सब्जी की दुकान लगाते थे, लेकिन इस घटना के बाद उनकी जिन्दगी पूरी तरह से पलट गयी। केस की विवेचना तत्कालीन पुलिस अधिकारी ब्रह्मा सिंह ने की। उन्होंने नरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी पर बच्चे की हत्या का इल्जाम लगाते हुए चार्जशीट भी दाखिल कर दी, जिसके बाद दोनों को जेल हो गयी और इनके दोंनो बच्चों को बाल सुधार गृह भेज दिया गया। इस दंपति को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पांच साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी तब जाकर इन्हें जेल से रिहा किया गया। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि पीड़त को मुआवजा दिलाने के साथ ही विवेचक पर सख्त कार्रवाई की जाए। जेल से छूटने के बाद इस दंपति को अपने बच्चों के बारे में पता लगाने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। काफी खोजबीन के बाद पता चला कि बच्चों को कानपुर के बाल सुधार गृह में रखा गया है। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें उनके बच्चे तो मिल गए लेकिन अब वह थाने में जमा अपने कागजात के लिए परेशान हैं। दंपति किसी तरह अपने बच्चों तक तो पहुंच गया लेकिन उसकी बेटी उसे पहचान तक नहीं सकी । अभियोजन पक्ष की ओर से कोर्ट में 6 गवाहों के साथ ही 32 सुबूत पेश किए गए. अभियुक्त की ओर से गवाहों से जिरह अधिवक्ता वंशो बाबू ने की । जिरह में विवेचक ने कोर्ट में स्वीकार कर लिया कि बच्चे की हत्या को लेकर लोगों में बहुत आक्रोश था इसलिए हत्या का कारण जानने प्रयास नहीं किया। विवेचक ने स्वीकार किया कि आनन-फानन में विवेचना पूर्ण करके चार्जशीट लगा दी।
पुलिसिया सिस्टम की बड़ी लापरवाही को उजागर कर दिया है ऐसी घटनाओं ने ।बिना सबूत के जल्दबाजी में पुलिस ने बलात्कार जैसे जघन्य मामले में जिस तरह से निर्दोष विष्णु तिवारी एवं हत्या के मामले दंपति को जेल भेजा था उससे पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं। महिला ने आपसी रंजिश निकाली और बस पुलिस ने गिरफ्तार किया और एक महीने के भीतर चार्जशीट दाखिल कर दिया। अब कोई कपिल सिब्बल तो इसके लिए आता नहीं तो इसे आनन फानन में सजा सुनाई गई। ये दिशा रवि, सफूरा जरगर तो था नहीं कि जज साहब बेल दे देते! इसे एक दिन के लिए बेल भी नहीं मिला। जमीन जायदाद बिक गया,मां बाप भाई मर गये मगर इसे दाह संस्कार के लिए पैरोल पर भी नहीं छोड़ा गया , ये कोई संजय दत्त तो था नहीं , तिवारी था या यूं कहे गरीब ब्राह्मण था । अब इस साल अचानक जज साहब ने देखा कि रेप तो हुआ ही नहीं था तो हें हें हें कर के तिवारी को रिहा कर दिया । पूरे बीस साल जेल में बंद रहा ये शख्स , क्यूंकि वो आर्थिक रूप से कमजोर था इसलिए ! क्या हमारा न्यायतंत्र अर्थवयवस्थाओं के हिसाब से न्याय देता है । यक्ष प्रश्न है मेरा । जय हिन्द !
— पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार ,केराकत जौनपुर उत्तर प्रदेश ।