दीया में तेलशक्ति भले क्षीण हो
पिता सूर्य की तरह जला है;
राहें अंधियारी उबड़ खाबड़
अपनों के खातिर सदा चला है!
अपनों के खातिर सदा चला है!!
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तूफान के साये काले कंदर्प
टूटा न उसका लोहित दर्प
लहूलुहान हुआ अपनों के लिए
दिल में रख बस एक तड़प!
दिल में रख बस एक तड़प!!
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तुम क्या जानो पिता क्या होता है?
तुम क्या जानो कैसे रातें सोता है ??
परिवार घरौंदा की दुनिया का
वह ब्रह्मा विष्णु महेश होता है !
वह ब्रह्मा विष्णु महेश होता है!!
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पंखों को वह नोंच नोंच कर
घोसला स्वप्न लोक सजाता ;
सींच सींच श्रम सींकर अपना
चुन चुन फुलवारी एक लगाता!
चुन चुन फुलवारी लगाता!!
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आसमान सा जगता है वह
धरती सा गुमसुम रहता ;
व्यथा कथा हृदय में रख
वह आघात संघातें सहता!
वह आघात संघातें सहता!!
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चिन्ता में भोर हो आती
सूरज जैसै कल रात न सोया;
सूजी आंखें किसे दिखाये
जिम्मेदारी खुद है रोपा बोया!
जिम्मेदारी खुद रोपा बोया!!
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हंसता है वह तिस पर भी
हांथ पकड़ राह दिखाता ;
पर क्या वह पुत्र पिता का
दर्द कराह सुन भी पाता?
दर्द कराह सुन भी पाता??
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निर्वहन की यही परम्परा
उड़ना पंखों को सिखाना;
ले अपने चिरैय्या चुरमुन
फुर्र से एक दिन उड़जाना!
फुर्र से एक दिन उड़ जाना!!
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-अंजनीकुमार’सुधाकर’