बाप के ही अंश होते
राम,श्याम,कंस होते
धर्म का ये भाव है की
उन्हें न बिसारिए।
दोनों हाथ जोड़कर
गर्दनें को मोड़कर
सामने से पैर छूके
स्वयं को उबारिए।
जहाँ कहीं आप फँसें
देख चार लोग हँसे
पुरखों की बात मान
पिता को पुकारिए।
नीति,रीति,ज्ञान लेके
मान व सम्मान लेके
लोकहितकारी बन
पिताजी को तारिए।।
कुँवर प्रताप गुप्त
महराजगंज। U P