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पिता को नमन और वन्दन करता हूँ (कविता 5)

जिनके मन की भाव तरंगें

आसमान को छू आती थी

जिनके अनुशासन की छाहै

मेरी सत्य दिशा  दात्री  थी।

जिसने मेरी अगुली पकडी

और मुझे चलना सिखलाया

जिसने धरती पर लिख लिख

वर्णो  से  परिचय करवाया।।

जिसने मुझको जीवन देकर

 मानवता  का पाठ  पढ़ाया

अन्तर्मन में ज्योति जलाकर

अन्धकार से  बाहर  लाया ।।

सत्य निष्ठ स्वर्गीय पिता  को

नमन और बन्दन करता हूँ।

नित उनके स्मृति ललाट को

कविता से चन्दन  करता  हूँ ।।

       डा0 प्रेम शंकर दिवेदी

                           भास्कर

कृपा शंकर नगर मछली शहर

            जौनपुर उ0प्र0

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