संसार- सरित में जब भटका ,
ममता नौका लेकर आई ।
जब भँवर बनी जीवन- धारा ,
माँ शक्ति- पुञ्ज बनकर आई ।।
कन्टकमय पथ विपदाओं में ,
उसने चलना सिखलाया है ।
निज बाँह- पालने झुला- झुला ,
अधरों से चूम सुलाया है ।।
अज्ञान- तिमिर जब गहराए ,
तब दिव्य- ज्ञान लेकर आई ।
संसार- सरित ………
जब आह कभी निकली मुख से ,
तब स्नेहमयी माँ सिहराई ।
नयनों में नेह- सुधा भर- भर ,
करुणामय पलकें भर आईं ।।
संताप भरे जीवन- पथ पर ,
आशीष हृदय में भर लाई
। संसार ………..
तुम हो उदारिणी कल्याणी ,
काली अम्बे सम शक्तिमयी ।
जगवीर प्रसविनी सृष्टि बिन्दु , विदुषी दुःखहरिणी प्रेममयी ।।
तारों से छीन प्रकाश पुञ्ज ,
नव दीपक ज्योतित कर लाई । संसार …….
अनुरागी माँ को श्रद्धानत ,
निज भाव- सुमन अर्पण करता ।
हो पूजनीय तुम हर युग में ,
जग कोटि- कोटि वन्दन करता ।।
तीनों लोकों के सुख को माँ ,
अपने आँचल में भर लाई ।
संसार सरित ........
. . डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ