इस एक जनवरी को उदित हुए सूरज के लाल रंग में उच्छवास नहीं है । घर की दीेवाल पर टंगें नए कैलेण्डर की चमक में भी आकर्षण नहीं है । शेष बचे पेड़ों की शाखाओं पर चिड़ियां तो चहक रहीं हैं पर इन पक्षियों की चहक मंे भी उत्साह नहीं सुनाई दे रहा है । हम तो ढेर सारी आशाओं और अनेक आकांक्षओं के साथ स्वागत करते हैं नये वर्ष का पर नये वर्ष के कैंलेण्डर के पन्ने पलटने के साथ ही आशाओं पर कागज के पन्नों जैसा दिखाई देने लगता है पीलापन । कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं की दहशत से भरे पीले पड़ चुके चेहरे पर नये सूरज के उदित होने वाली लालिमा कैसे दृष्टिगोचर होगी । हम तो कोरोना की दो विभीषकाओं में गंवा चुके बहुत कुछ, अब तो हमारे पास है ही नहीं कोरोना को भंट चढ़ाने के लिए कुछ भी, पर यह दो घड़ी चैन की सांस भी तो नहीं लेने दे रहा है । हम नए साल का स्वागत करें भी तो कैसे । कैलेण्डरों के पन्नों में बांच रहे हैं भविष्य इस उम्मीद के साथ कि किसी पन्ने में तो लिखी होगी खुशी की इबारत, कियी पन्ने में तो राहु-केतु की जोड़ी और शनि का संगम आनंद के पलों की छवि प्रदर्शित कर देगी । कहीं तो दर्ज होगा कि नए साल के इस महिने में एक बार फिर हमारे आंगन में बिखर जायेगीं खुशियां । तारीख पर तारीख और पन्ने पर पन्ना पलटने के बाद भी दहशत से छुटकारा पाना का कोई उपाय नजर आ कहां रहा है । वैक्सीन लगे हाथों को मेंहदी लगे हाथों जैसा नाजुक बना तो लिया है पर कहीं मेंहदी जैसा लाल रंग समय के साथ छूट न जाए की आशंका को निकाल कहां पा रहा है । दो गज की दूरी ने गले लगने की परंपरा को खत्म कर दिया है, मास्क लगे चेहरों ने मुस्कुराहट को खत्म कर दिया है और किसी के दर्द से चेहरे पर उभरने वाली पीड़ा ने चिन्ता का स्वरूप धारण कर लिया है । वेदना, संवदेना भय की भेंट चढ़ चुकी है और रिश्ते-नाते कागजी महल में बदल चुके हैं । हम किसी के साथ प्रसन्नता भी तो नहीं बांट पा रहे हैं और न ही अपनों के साथ गले लगकर अपने दुखों के जोड़-घटना के समीकरणों को हल कर पा रहे हैं । जीवन के गणित में अब हर बार भागफल में केवल कष्ट ही आ रहे हैं और गुणनफल कोष्ठकों के हवाले होकर हमें चिढ़ा रहा है । हम अल्प विराम को भूल कर हर बार प्रश्वाचक चिन्हों के घेरे में आकर पूर्ण विराम की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं । मंत्रों की भांति हम गीता के ज्ञान के श्लाकों को रट रहे हैं और समाचार पत्रों के हैंडिगों में राशिफल खोज रहे हैं । हमारा राशिफल अब कोरोना के हवाले हो गया है । कोरोना नहीं होगा तो ही हमारा व्यापार चलेगा, हमारी जाॅब चलेगी, हमारा घर से निकलना हो पायेगा । पर अभी तो तीसरी लहर भी आने वाली है । हम तो सावधान हैं पर हमें अपने रोजमार्रा के काम तो करने ही होगें । हम घर में कैद रहकर अपना जीवन नहीं चला सकते । चुनाव भी होंगें और मतदाता वोट भी डालेगा । चुनाव बाधित नहीं किए जा सकते । पाचं राज्यों के चुनाव होना है । सारे राजनीतिक दल अपने आपको इन राज्यों में केन्द्रित कर चुके हें । उनके लम्बे कुरतों से राज्यों का भविष्य तय होगा । वे क्रीम लगे चेहरों की चमक से वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं । वे बता रहे हैं कि ‘‘हम उनसे अच्छे क्यों हैं’’ । वे फिरी में ज्यादा कुछ दे देना का वायदा कर रहे हैं । मतदाताओं को लुभाने का बस यही एक तरीका अब राजनीति में रह गया है । वे दिल लद गए जब मतदाताओं को अपने विकास की लम्बी फेहरिस्त से लुभा लिया जाता था । उन्हें याद करा दिया जाता था कि ‘‘देखो हमने तुम्हारे लिए रोड बना दी, देखो हमने तुम्हारे लिए बिजली की जगमग रोशनी का जालन फेला दिया कि देखो हमने तुम्हारे लिए पानी की व्यवस्था कर दी । मतदाता की तराजू में वायदे नहीं कार्य तौले जाते थे । पर अब जमाना बदल गया है, राजनीति का पैटर्न भी बदल गया है अब क्या किया और क्या करेगें में सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि आप हमें निःशुल्क देगें क्या । राजनीतिक दल अब मुफ्त में दी जा सकने वाली लिस्ट लेकर हाजिर हो जाते हैं । वे चिल्ला-चिल्ला कर बता देते हैं कि हम भले ही रोड कर सौगात न दे पायें, हम भले ही साफ पानी न दे पाए, हम भले ही पूरे समय बिजली न दे पाऐं पर बिजली का बिल माफ कर देगें, हम किसानों का कर्जा माफ कर देगें । किसान किस कारण से लोन लेता है हम उन कारणों को दूर करने की बजाए ब्याज माफ करने की घोषण करते हैं । सब कुछ बदल चुका है । हर बार चुनाव में नए-नए लालीपाॅपों का मेला लगता है और हर बार मतदाता उनके झांसे में आ जाता है । पाचं राज्यों के होने वाले चुनावों में भी यही सब देखने को मिल रहा है ‘‘पहले इस्तेमाल करो फिर विश्वास करो’’ की घोषण की जा रही है । मदारी अपने झोले से एक-एक जादू के आइटम निकाल कर दिखा रहा है । चुनाव का मेला कुभ के मेले जैसा प्रदर्शित होता जा रहा है । सत्ता की कुर्सी चाहिए । सत्ता की कुर्सी पर बैठकर वे राजनीति वाली समाज सेवा ं करेगें । कुर्सी के बिना वे समाज सेवा नहीं कर सकते । सत्ता की कुर्सी महाभारतकालीन चक्रव्यूह जैसी है । जो एक बार कुर्सी पर बैठ जाता है वह दुआर उस पर बैठने के लिए तिकड़म भिड़ाता है जो नहीं बैठ पाता वह हार नहीं मानता फिर से उठ खड़ा होता है और नई तिकड़म में लग जाता है । जीतने वाला और हारने वाला दोनों चक्रव्यह के एक-एक चक्र को पार करने के संघर्ष में लगे रहते हैं । यह चक्र निरंतर चलता रहता है । पांच राज्यों के चुनाव में प्रपंच चल रहा है । नए वर्ष के नए कैलेण्डर के प्रथम पेज की भांति चमकता उनका तन अविराम गतिशील है । वो तब तक गतिशील रहेगा जब क चुनाव के परिणाम नहीं आ जाते । परिणाम आने के बाद वे उन राज्यों की ओर अपना रथ हांक लेगें जहां इसके बाद चुनाव होने हैं । उनका रथ गतिशील बना रहता है । वे विश्राम नहीं करते उन्हें सामजसेवा करनी है और समाज सेवा के लिए सत्ता की कुर्सी आवश्यक है । वे कुर्सी पर बैठकर समाजसेवा करने के आदी हो चुके हैं । कोरोना की हर आयेगी इस आशंका के बाद भी वे बड़ी-बड़ी चुनावी सभाओं में लोगों को आमंत्रित कर उन्हें समझा रहे हैं कि वे उन्हें ही वोट क्यों दें । आम आदमी उनकी सभाओं में जाकर ‘‘दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी’’ की हेडलाइन को भूल जाता है । फिर यही आम आदमी अस्पतालों के बेड पर पड़ा हुआ ‘‘आक्सीजन’ के लिए मन्नतें मांगता है । चुनाव आवश्यक हैं । चुनाव में उनका जाना आवश्यक है और जब वे जायेगें तो भीड़ भी आवश्यक है । यह त्रिवेणी कोरोना को आमंत्रित करती है जिसका प्रतिफल बहुत सारे लोग भोगते हैं । वे अपने कपड़े बदलकर, अपना मास्क बदलकर, हाथों को और सारे तन को खुशबूदार सैनेटाइजर से रंग कर ताजी शुद्ध हवा को ग्रहण करते रहते हैं वहीं आम व्यक्ति आक्सीजन मांगते-मांगते दम तोड़ देता है । उसके लिए नए साल के नए कैलेण्डर के भविष्य फल का कोई महत्व नहीं होता , वह उसी समाज का अंग है जिसकी सेवा करने के संकल्प के साथ लम्बे कुरते भीड़ इकट्ठी करते हैं । किसान तो अपने अपने घरों को जा चुके हैं । उन्होने गत वर्ष सड़कों पर नए साल का जश्न मनाया था । कैलेण्डर के न्हिीं पन्नों में उनका राशिफल संघर्ष के बाद उदित होते सूरज की लालिमा से युक्त होगा लिखा होगा । उनकी मांगें मान ली गई । वे प्रसन्न हैं पर हर कोई प्रसन्न नहीं है । नए वर्ष की उदित होती सूरज की किरणें उसे उच्छवास से नहीं भर पा रही हैं । पर हम तो आशावादी है, हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वो हमें आनंद दे, प्रसन्नता दे, सम्पन्नता दे और कोरोना से लड़ने का साहस दे । सभी को नव वर्ष की मंगल कामनाऐं ।
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव (वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार)