सुबह जैसे ही टी वी खोलते ही लोगों ने हैदराबाद के चारों बलात्कारियों के एन्काउन्टर में मारे जाने का समाचार सुना,तो पूरे देश में खुशी व उल्लास का वातावरण छा गया। ऐसे वीभत्स कांड के इतनी जल्दी पटाक्षेप ने जन मानस में आशा का संचार कर दिया। 16 दिसम्बर को निर्भया कांड को सात साल पूरे हो जायेगें।इतना शोर,बावेला हाय तौबा के बाद तथाकथित सख्त कानून बना,पर आज भी फांसी नहीँ हो रही है।कानूनी दांवपेंच, औपचारिकताओं के जाल में यह लटका केस कितना समय औऱ ले ले,नहीं पता।ऐसे में लोगों का न्याय व्यवस्था, प्रशासन से विश्वास उठना स्वाभाविक ही है। एकदम अप्रत्याशित त्वरित इस ‘न्याय’ पर उजागर प्रसन्नता ने कई प्रश्नों को जन्म दे दिया है। दस प्रतिशत एन्काउन्टर ही सत्य प्रतीत होते हैं, पर सवाल सब पर उठते हैं। इस पर भी उठे,सुप्रीम कोर्ट भी इसे देख रही है। सिस्टम से नाउम्मीदी तो अराजकता ही बढ़ायेगी। आम जनता जल्द न्याय चाहती है, कानूनी प्रक्रिया से पर ,समयबद्ध।
आरोपियों की दोष स्वीकार्यता के बाद भी सालोंसाल लग जाएं तो विश्वास तो डगमगाएगा ही।यह समाज, प्रशासन, व्यवस्था सबकी विफलता है।
आज हम लड़की के आने जाने,पहनावे,व्यवहार पर अंकुश रखते हैं, उनकी
बाध्यताएं भी हैं, मर्यादा भी। पर लड़कों के लिये यह जरूरी क्यों नहीँ।लड़की आठ बजे रात तक आये तो प्रश्नों के घेरे में,लड़का रात को एक बजे भी शराब पी कर आ रहा है तो कोई बात नहीं। कई मामलों में तो माता पिता को,थाने से फोन आने पर
पता चलता है, जब वो ऐसे ही किसी केस में सलिंप्त होता है,तब भी माँ बाप उसकी कारगुजारियों को दरकिनार कर बचाने में लग जाते हैं। कोई ऐसे माँ बाप आज तक नज़र आये जिन्होंने यह कहा हो यदि यह दोषी है तो कानून को अपना काम करने दो हमारा कोई हस्तक्षेप नहीँ होगा।
नारी की कोख से जन्मी मानव जाति नारी की ही दुश्मन,उसे नोंच खाने को तैयार।
कैसी विडंबना है?
जब निर्भया कांड हुआ तो कांग्रेस सरकार थी,इस भाजपा सरकार ने तब तो
बड़ी बड़ी बातें कहीं,कैसी कैसी दुहाइयाँ दी और सत्ता के छठे साल में मामला ज्यों का त्यों हैं।
सब अपनी अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, जनता रूपी द्रौपदी की किसी को चिंता नहीं, दुर्योधन, दुःशासन हर तरफ भरे पड़े हैं, यहां तक कि यौन शोषण व बलात्कार के आरोपी रहे आज सांसद व विधायक भी हैं।
हैदराबाद की घटना बस एक अपवाद ही बने यदि सरकार में थोड़ी सी भी गर नैतिकता व शर्म है तो जल्द से जल्द बलात्कार के मामलों का निपटारा एक से तीन माह के भीतर निपटाने का सख्त कानून पास कराए, अब तो पूर्ण बहुमत है,बहाना भी क्या लगाओगे, इच्छा शक्ति का शोर बहुत मचाते हो, कुछ कर के भी दिखाओ।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल इस बार भी सख्त कानून बनाने को ले कर आमरण अनशन पर बैठीं,सात साल पहले भी माँ भारती की इस बेटी ने आमरण अनशन किया था,तब आश्वासनों के खट्टे बेरों के झांसे में आई बेटी को क्या मालूम था,तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आएगा, पांच साल महिला व बाल कल्याण मंत्री रही मेनका गांधी ने क्या किया। महिला हो कर भी महिलाओ के दर्द को समझा?अब उल्टे एन्काउन्टर पर प्रश्न उठाते हुए कहा एक निर्भया केस में विलम्ब हो गया तो ऐसे ही मार दोगे। अरे! तुमने तो निर्भया कोष का पैसा भी सही से इस्तेमाल नहीँ किया।
यौन शोषण व बलात्कार के आरोपियों का हर हाल में सामाजिक बहिष्कार हो,सख्त से सज़ा जल्द से जल्द हो,माँ बाप भी ऐसी संतान से मुहँ फेर लें,संपत्ति से बेदखल कर दें,तब ही समाज की दशा भी बदलेगी व दिशा भी।
समाज की हालत आज बहुत बुरे,घोर अविश्वास एवं अत्यंत चिंताजनक दौर में पतन के गर्द में है,
यदि प्रशासन व न्याय व्यवस्था ऐसे ही पंगु रही, तो इससे भी ज्यादा भंयकर दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।
अच्छे दिन की अनवरत ढपली बजाने वाले हमारे मोदी जी मात्र उपदेशक, इवेंट मैनेजर लगते हैं और उनके हनुमान अमित जी भारत के हर कोने में सरकार बनाते व बचाते नज़र आते हैं। मोदी जी मन की बात करते हैं, दूसरों के मन की बात कहां समझते हैं?टोंक, हैदराबाद, उन्नाव जैसी घटनाओं पर अब तक मौन क्यों हैं? अब तक मात्र पांच प्रतिशत फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट अस्तित्व में आईं हैं,अधिकांश
सीटें न्यायालय में नियुक्ति की बाट जोह रही हैं। तीन लाख से अधिक केस पेंडिंग हैं। थानों में महिला डेस्क बना कर क्या करोगे,जब समुचित स्टाफ की भर्तियां नहीं होंगी।जब राम मंदिर के केस की सुनवाई रोज हो सकती है तो उन्नाव के पांच दरिंदो के लिये क्यों नहीं,यह फ़ास्ट ट्रैक भी कुछ दिन में स्लो हो कर खानापूर्ति नज़र आएगा।
शासकों में इच्छा शक्ति के अभाव में ऐसे हालात बार बार पैदा होते रहेंगे और हम बेबस, लाचार कैंडल लाइट जलाते रह जाएंगे।
भारत माता आज कराह रही है, चीत्कार कर रही है, कोई सुनने वाला जैसे है ही नहीं। दो तिहाई बहुमत के बाद भी इतनी विवशता! समझ नही आता क्यों?
पिछली सरकारों को कोसने की बजाय कुछ अलग कर के दिखाओ,
आखिर अपने को’पार्टी विद ए डिफरेन्स’ कहते हो !आखिर जनता कब तक इंतजार करेगी?उसके सब्र के प्याले की कब तक परीक्षा लेते रहोगे?आज हर सच्चा
हिंदुस्तानी उद्देलित, आक्रोशित है, खून के आंसू रो रहा है, येआंसू विद्रोह में बदल कर तेजाबी हो जाएं,सम्भल जाओ, जनता के वोट से चुने जाने वालो, जनता की सुध ले लो,यही तख्त पर बिठाती है, यही तख्ता पलटती है।
नारी की अस्मिता की रक्षा करना तुम्हारा दायित्व है,नारी के अंदर दुर्गा,सीता,सावित्री,लक्ष्मी भी है और लक्ष्मीबाई भी जो अंग्रेजों से अकेली भिड़ गई थी। अब हर महिला को अपने अंदर की लक्ष्मीबाई को जगाना होगा,सबल बन अपना सम्बल स्वयं बनना होगा।अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को एक जुट हो कर सबक सिखाना होगा। आत्मरक्षा के हर उपाय से सब को जाग्रत करना होगा। ऐसे नरपिशाचों को पीटते,घसीटते हुए ले जा कर थाने में पटकना होगा,सिर्फ सरक सरक कर चलती सरकारों के भरोसे कुछ नहीं होगा।
अभिभावकों को अपनी संतान के प्रति सचेत रहना होगा।आधनिकता के नाम पर खुली छूट कुछ भी गुल खिला देगी बाद में हाथ मलते, पछताते रह जाओगे। दिल,दिमाग मे विकृत मानसिकता ही उकसाने का काम करती है।
आध्यात्मिक कहे जाने वाले इस देश में करोड़ों युवा अपना अधिकांश समय पोर्न वीडियो देखने मे बिता रहे होते हैं।
नारी,कन्या पूजा के इस देश में रेप घटनाओं की बढ़ती अधिकता ने जन मानस को अंधेरे भविष्य के गर्त में डाल दिया है। अब समय आ गया है ,
अब रेपिस्टों के साथ रेप टेररिस्ट वाला सलूक किया जाए,सख्त कानून,
प्रशासन का भय,त्वरित न्याय जब तक नहीँ होगा तब तो अंधेर नगरी चौपट राजा वाला हाल हो जायेगा, कोई डर नहीं की कुप्रवृत्ति आने वाली पीढ़ियों को नारकीय जीवन जीवन जीने को ही मजबूर कर देगी,समाज तभी बदलेगा,जब पहले तुम स्वयं को बदलोगे।आज “बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ “अभियान के साथ साथ बेटा पढ़ाओ, संस्कार सिखाओ”अभियान की भी जरूरत है
-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’
कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
सेक्टर 2 बहादुरगढ़(हरियाणा)