प्रणाम तुझे ए नारी शक्ति, तू अपने में उत्कर्ष है।
पार करे सारी विपदाएं, तू अपने में संघर्ष है।
साहस और बलिदान की देती नई मिसाल है।
तू मानव जननी,तू पालनकर्ता,तू ही तो ढाल है।
आदरणीय है,सम्मानित है तू सेवा की मूरत है।
मां रूप में देखो तो,तू ईश्वर की ही सूरत है।
प्यार भरे रिश्तों से तू सबको बांधे रखती है।
देती सबको ही सम्मान,मर्यादा में रहती है।
बुरी नज़र डाले कोई,तू चंडी बन जाती है।
बुरा हाल करती उसका, रोद्र रूप में आती है।
मां बाप के प्रति फ़र्ज़ को तू ही पूरा करती है।
पीहर और ससुराल में सामंजस्य स्थापित करती है।
सीधा सादा वेश लिए कार्यों को निबटा लेती है।
बेटी,बहन,पत्नी, मां, और कई रूप में रहती है।
रिश्तों में रहे मिठास, तेरी यह कोशिश होती है।
अपनापन बना रहे तेरी यह फितरत होती है।
कुछ झगड़ा हो तो,करती विचार विमर्श है।
प्रणाम तुझे ए नारी शक्ति तू अपने में उत्कर्ष है।
थोड़ा सा सम्मान चाहती,थोड़ा सा
मान चाहती
नहीं चाहती तू धन दौलत
ना तू अपना नाम चाहती।
नारी की भावनाओं को
ठेस कभी ना पहुंचे
इस बारे पुरुष वर्ग
हृदय से कुछ सोचे।
हीरेन्द्र “जापानी”