नारी
नारी कुल की मर्यादा है।
नारी उपहास की चीज नहीं।
जो मान घटाए नारी का,
तो उसको कोई तमीज नहीं।।
सम्मान आबरू है नारी।
सब कुछ समाज पर है वारी।
आगे बढ़ने दो नारी को,
उसकी सीमा दहलीज नहीं,,,,,,,
प्रसव की पीड़ा कौन कहे।
हर गम को नारी मौन सहे।
सब्र का दूजा नाम है नारी,
नारी ना हो तो कोई बीज नहीं,,,,,,
नारी हर जगह महफूज नहीं।
मां बहन बेटी की सूझ नहीं।
करता है अपवन नारी को,
कोई उससे बड़ा कमीज नहीं,,,
देवी की तरह है पूज्य सदा।
कोमल भावुक है, करे कर्तव्य अदा।
नारी की मदद के बिना मधुकर,
पा सकता कोई बुलंदीज नहीं,,,,,
कवि रामगोपाल श्रीवास मधुकर