इस संसार में आकर ,हमनें पिता को शीश नवाया हैं।
हमारे रूप को देखकर ,पिता ने अपने रूप को हममें देखा हैं।।
जब हम हँसते मुस्कराते हैं ,पिता ने हममें अपनी मुस्कान को पाया हैं।
जब हम व्याकुल दुखी होते हैं, पिता ने भी हमारे सभी दुखो को समेटा हैं।।
माता ने पिता को पाकर के, खुद को सम्पूर्ण बनाया हैं।
पिता से सभी सुख पाकर, माँ ने अपना सुखी परिवार बसाया हैं।।
पिता से ही इस संसार में,एक सुखी परिवार बनता हैं।
पिता के बिना तो परिवार सदा अधूरा रहता हैं।
पिता का मोल भी वही जानता, जिसने अपने पिता को खोया हैं।
बाकी तो इस दुनिया ने,पिता को समझ न पाया हैं।
पूनम द्विवेदी