(सम्पादकीय)
आप सभी को बसन्त पंचमी की हार्दिक बधाई एवं ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का आशीर्वाद आपको प्राप्त हो, ऐसी मेरी मंगलकामना है ।
मौसम बदला, मौसम का मिजाज बदला, अब पतझड़ समाप्त और पौषे खिलखिलाने लगेंगे, सर्दी की ठिठुरन अब समाप्त सी हो गई है । मनुष्य अपने अड़ियल रवैये से बदलने को तैयार नहीं होता । पिछले दिनों उत्तराखण्ड के चमोली में ग्लैशियर फटने से जो हादसा हुआ, उससे हम सभी दुखी हैं । दो सौ से अधिक लापता हैं । 54 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है । यह हम सब जानते हैं । विचारणीय है कि प्रकृति की सुरक्षा उसके संतुलन बनाने के लिए कितनी आवश्यक है, इसके लिए अनेक संस्थाएं भी जागरुकता अभियान चला रही हैं किन्तु उसका असर बहुत कम या नगण्य सा दिखता है । सरकार भी प्रयास करती है । वैज्ञानिकों ने पहले ही चेताया था फिर भी हम घटित हो जाने के बाद तीव्रता–सजगता–दृढ़ता व समर्पण दिखाते हैं । आदरणीय प्रधानमंत्री जी अथवा सम्बंधित अधिकारीयों का ध्यान चाहूंगा कि जिस प्रकार जनता की भलाई के लिए (कहकर) कठोर निर्णय–कड़वी दवा स्वरूप चाहे नोटबंदी–जीएसटी आदि लागू कर दिये गये । बहुत मुश्किलें भी आर्इं किंतु समय के साथ–साथ मनुष्य जीना सीख लेता है और चीजें सहज हो जाती हैं । कोरोना पर विजय पाने हेतु हमने क्या–क्या कठोर निर्णय नहीं लिए या कहें लेने पड़े – मानवता की खातिर–मानव की रक्षा हेतु । और आज जब हम विजय के द्वार पर खडे़ हैं तो हमें अच्छा लग रहा है और समझ भी आ रहा है कि वे कठोर निर्णय हम सबकी / देशवासियों की भलाई के लिए हैं । और आज तो सत्तासीन सरकार में कठोर निर्णय लेने का माद्दा दिखता है । तो क्यों न देश की/मानवता की रक्षा हेतु कुछ कडे़/कठोर निर्णय–नियम बनाएँ कि सब कुछ सुरक्षित भी रह सके और लाभकारी भी । स्कूलों में/कॉलेजों में संस्थाओं में जिस प्रकार प्रार्थना–राष्ट्रगान आदि हम करते हैं उसी प्रकार प्रकृति संरक्षण का संदेश बार–बार हमारे मन–मस्तिष्क में जाना चाहिए और सभी को मिलकर प्रयास करने से कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता । एक हादसा अपने निशान छोड़ जाता है जो सदियों तक नहीं भुलाया जाता ।
हम कोरोना से बचाव के लिए आज भी दो गज दूरी, मास्क है जरूरी का पालन कर रहे हैं । दो वैक्सीन भी लगनी प्रारंभ हो गई है । रिकवरी रेट 97 प्रतिशत से भी अधिक हो गया है । इसका भय भी लगभग खत्म सा हो गया है ।