विदेशियों से अपनी भाषा की इज़्ज़त कैसे की जाती है ? यह हमें सीखना होगा। सिर्फ ” हिंदी हैं हम, वतन हैं , हिन्दोस्तां हमारा ” गाने से कुछ नहीं होगा। विदेशों में संडास साफ करने वाला भी अंग्रेज़ी बोलता है और भारत में बोलने का स्तर अमीर गरीब बनाता है। बड़े आदमी अंग्रेज़ी बोलेंगे और गरीब हिंदी मीडियम के हिंदी। यानी हमें हिंदी बोलने में शर्म आती है।
यहीं फर्क समझ आता है कि हमने समाज की दशा क्या कर दी है। हिंदी की दुर्दशा करने वाले कुछ अमीरों की श्रेणी में आते हैं – यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकिं विदेशों में सभी अपनी राष्ट्रभाषा-मातृभाषा ही बोलते हैं लेकिन हमारे यहां अमीर हिंदी में बात करलें तो वे समाज के सामने बेज्जत हो जायेगें। उनके शरीर पर अमीरी की लिपी-पुती स्याही मिट जायेगी। उनका स्टेटस कम हो जाएगा, लोकप्रियता गिर जाएगी कि अंग्रेज़ी नहीं बोल पाते। लोग ताने देकर कहेंगें कि बड़े बड़े स्कूलों में पढ़े लिखे लोग हिंदी बोल रहे, हिंदी।
शर्म आनी चाहिए हमें ऐसी घटिया सोच रखने के लिए। हम लोगों ने उन्हें मजबूर कर दिया है कि तुम बड़े अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़े तो अंग्रेज़ी ही बोलकर दिखाओ। असल में हम भी एक तरह के अपराधी ही हैं जो हर समय हिंदी को अपमानित करने में लगे हैं।
तुमने संस्कृत को छोड़ा फिर अपनी मातृभाषा को छोड़ा फिर हिंदी को छोड़ा… और अंग्रेज़ी को अपनाया। अब तुम्हारा मन अंग्रेज़ी से भी भरने लगा कि अब तुम्हें जापानी, चीनी, फ्रेंच आदि भाषाएँ सीखनी हैं। अब तुम्हें अंग्रेज़ी बोलने में शर्म आने लगी कि ये तो आजकल सभी बोलने लग गये, चलो अब नयी भाषाएँ सीखते हैं तो समाज में रुतवा और बढ़ जाएगा कि इन्हें इतनी सारी भाषाओं का ज्ञान है। भाषाओं का ज्ञान बुरा नहीं लेकिन हिंदी से मुंह मोड़ना बेहद दुखद है।
अभी तुमसे तुम्हारी ही मातृभाषा में गिनती के कुछ शब्द जैसे- उनहत्तर या उन्यासी को अंक में लिखने की बोल दिया जाए तो लिख नहीं सकते, सोच में डूब जाओगे कि ये होते क्या हैं ? क्यों ? क्योंकि तुमको आती ही नहीं हिंदी की गिनती। तुमने यह नहीं सोचा कि चलो अंग्रेज़ी सभी बोलने लगे तो हम अपनी मातृभाषा का प्रयोग करके उसे राष्ट्रभाषा में बदलें।
सामाजिक मानसिकता यही है देशी को अपनाओगे तो इज़्ज़त नहीं मिलेगी , विदेशी भाषा में टूटा फूटा बोलोगे तो इज़्ज़त बढ़ेगी। कभी शुद्ध हिंदी ना सही लेकिन खड़ी बोली ही बोलकर देखो, कितना अपनापन लगेगा।
संस्कृत का अब नाम और निशान ही मिटने लगा है, बस कुछ शिशु मंदिरों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। आज की पीढ़ी यह नहीं जानती कि सारी भाषा संस्कृति संस्कृत की ही देन है।
संस्कृत से जन्मा शास्त्रीय ज्ञान था
अमर अतुल ओजश्वी वरदान था ।
ज्ञानचक्षु खोल विवेक धारण किया
फतह ध्वजा फहराने का सम्मान था ।।
अगर किसी देश की संस्कृति सभ्यता को नष्ट करके उस पर राज करना है तो सबसे पहले उसकी भाषा को नष्ट करो औऱ यही काम विदेशियों ने बहुत सटीक तरीके से किया। क्या आप जानते हैं कि मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।
1100 ईसवीं तक संस्कृत समस्त भारत की राजभाषा के रूप सें जोड़ने की प्रमुख कड़ी थी। अरबों और अंग्रेजों ने सबसे पहले ही इसी भाषा को खत्म किया और भारत पर अरबी और रोमन लिपि और भाषा को लादा गया। भारत की कई भाषाओं की लिपि देवनागरी थी लेकिन उसे बदलकर अरबी कर दिया गया ,तो कुछ को नष्ट ही कर दिया गया। वर्तमान में हिन्दी की लिपि को रोमन में बदलने का छद्म कार्य शुरू हो चला है।
संस्कृत विश्व की प्राचीन ज्ञात भाषाओं में से है। भारत में बोली जानें वाली भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से ही हुई है। संस्कृत भारत की शास्त्रीय भाषा, ग्रंथभाषा, आर्यभाषा है और आज इसका अस्तित्व मिटने लगा है। अंग्रेजों ने तो साजिश करके, षडयंत्र करके भारत में चलने वाले 7 लाख 32 हजार गुरूकुलों को जो मूल रूप में संस्कृत में पढ़ाया करते थे, जड़ से खत्म कर दिया था, बंद कर दिया था और यहीं से संस्कृत का अस्तित्व विलीन होना शुरू हुआ और अब हिंदी भाषा भी ऐसी ही विलिनता कि ओर बढ़ रही है।
—- जयति जैन “नूतन” —-