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मँद न होने पाए लौ आज़ादी के हुस्न ओ जमाल की प्रीत की डोर से बँधी रहे कलाई हर माँ के लाल की

मँद न होने पाए लौ आज़ादी के हुस्न ओ जमाल की

प्रीत की डोर से बँधी रहे कलाई हर माँ के लाल की

वो कितना खूबसूरत नज़ारा होगा जब समस्त भारत बिना किसी भेदभाव के एकता की डोर से बँधा हर लम्हा आज़ादी का जश्न मनाएगा।लेकिन क्या एैसा सँभव है? जी हाँ अगर शिव जी विष पान कर के भी अमर हो सकते हैं तो प्रेम की गणित के भी समस्त सवाल हल हो सकते हैं।

क़ुदरत भी कभी कभी कैसे अजब कमाल करती है

आज़ादी दिवस और रक्षाबँधन दोनों एक ही दिन में

समूचे भारतवर्ष की जनता से अनूठे सवाल करती है

लगभग बीस साल पहले जिस उत्साह से उत्सव मनाए जाते थे, वो उत्साह भी आज डिजिटल हो कर रह गया है।छुट्टियाँ होते ही एक दूसरे के घर आना जाना एक दूसरे की ख़ैरियत का पता रखना, नानी-दादी के घर धमाचौकड़ी मचाना तो अब केवल क़िस्से कहानियों में ही सिमट कर रह गया है। त्योहारों पर एक दूसरे को बधाई देने जाना तो दूर अब तो फोन पर बात करना भी समय का दुरूपयोग समझा जाने लगा है। बस सोशल मीडिया पर चँद लफ़्ज़ों के आदान प्रदान से ही दायित्व पूर्ति हो जाती है। एैसे में अगर अब की बार प्रत्येक भारतवासी सोन चिरैया को वापस लाने की ठान ले तो वो दिन दूर नहीं जब समूचा हिंदुस्तान परस्पर बँधुत्व की डोर से बँध कर हर लम्हा आज़ादी का जश्न मनाएगा।

पिछले दिनों कुछ ही समय के अँतर पर भारतवर्ष ने दो अनमोल रत्न खोए हैं, जिन्हें श्रृद्धाँजलि दिए बग़ैर इस बार के स्वतँत्रता दिवस की हर सलामी अधूरी रहेगी।

कांग्रेस की शीर्ष नेता, शीला दीक्षित जी जिन्होंने अपने लगातार डेढ़ दशक के मुख्यमंत्रित्व काल में देश की राजधानी दिल्ली का चेहरा बदल दिया था।और हर दिल अज़ीज़ भारत की पूर्व विदेश मँत्री सुषमा स्वराज जी जिनके वात्सल्यपूर्ण क्रियाकलापों से कोई भी अछूता नहीं है।भारतीय राजनीति की इन दोनों महान विभूतियों को नमन करती हूँ, जिन्होंने पँचतत्वों में विलीन होकर भी समूचे भारतवर्ष को अपने नेह के बँधन में बाँधा और देश की अस्मिता का रक्षासूत्र बनीं। भारतवासियों को आज़ादी दिवस पर, हर प्रकार के स्वार्थ से आज़ाद होकर देश प्रेम का सँदेश देती इन दोनों पुण्यात्माओं को सच्ची श्रृद्धाँजलि यही होगी कि भारत के उत्थान के लिए परस्पर एकत्व की भावना के साथ स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना सहयोग दें।

कश्मीर से धारा 370 हटा कर प्रधानमँत्री नरेंद्र मोदी जी ने अलगाववाद पर लगाम कसने का एक बेहद मज़बूत क़दम उठाया है।अब प्रत्येक भारतवासी का ये दायित्व है कि परस्पर बँधुत्व की मशाल को जलाए रखें ताकि फिर कोई भी भक्षक किसी रक्षक के रूप में हमारे देश की सीमाओं पर दरिंदगी का कोई खेल न खेले।

इश्क रब हो मोहब्बत मज़हब हो, गँगाजल से स्वर हो जाएँ

बहलाना और बहल जाना खिलौनों और बच्चों की नियति है

इतना वक्त नश्वरता को दे कर भी रिश्ते अनश्वर न हो पाए

क्यूँ ना कुछ जीवँत अहसास बच्चों में बाँटे,जो अमर हो जाएँ 

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कभी मीरा कभी अहिल्या कभी सीता कभी द्रौपदी,तिरस्कृत

किसी माँ बहन बेटी पत्नी प्रिया के लिए,अक्षयपात्र नहीं बने

क्यूँ न कुछ रूहानी सँबँध लक्षित करें,आसान सफर हो जाए

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काम क्रोध लोभ मोह और निंदा की दौड़ में सब प्रतिस्पर्धाएँ

मैं मेरी के सागर में,धाराओं के विरूद्ध तैरती सबकी वासनाएँ

क्यूँ न जग को मीठे फल और ठँडी छाया देते शजर हो जाएँ

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घर की बुनियाद,पिता को पैसा कमाने की मशीन बना डाला

वृद्धाश्रम की दहलीज़ पे बिठा कर, लगाया मुक़द्दर को ताला

क्यूँ ना विरासत में त्याग उगा कर,सभी सँबँध मधुर कर जाएँ

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अलगाव आक्रोश स्वार्थ घृणा की बेग़ैरत नस्ल, बदरँग धरा

बारहमासी सावन सा मानव जन्म,पर नहीं एक भी दिल हरा

इश्क रब हो मोहब्बत मज़हब हो, गँगाजल से स्वर हो जाएँ

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हर स्वार्थ,घृणा व ईर्ष्या-द्वेषी मनोविकार से आज़ादी पाएँ

क्यूँ ना परस्पर उत्थान हेतु एक दूजे का रक्षासूत्र बन जाएँ

कल्याण,जनहित,समभाव व निस्वार्थ प्रेम से जश्न मनाएँ

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