नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल
मानवता के प्रहरी एवं पर्यावरण प्रेमी के रूप में प्रसिद्ध लाल बिहारी लाल, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है, आज उनका जन्मदिन है। हमारी ओर से लाल बिहारी लाल को जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयां। इनका व्यक्तित्व अत्यंत सहज, सरल और उदार है, वहीं इनका कृतित्व साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक मूल्यों का वहन करते हुए समाज में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने में सक्षम रहा है। अपनी नियमित जीवन – शैली में से समय निकालकर समाज के प्रति कुछ करने की ललक ही इन्हें विशिष्ट बनाती है। हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में जैसे – कविता, कहानी,आलेख,गीत,आदि में भी इनकी लेखनी ने अपना कमाल दिखाया है। जहां एक ओर पर्यावरण संबंधी इनकी विभिन्न रचनाएं मनुष्य मन को प्रकृति की ओर उन्मुख करती है, वहीं सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी रचनाओं के माध्यम से इन्होंने करारा व्यंग्य भी किया है। इनकी लिखी हाइकू भी मानव मन को झकझोर कर रख देती है। इसके अलावा इन्होंने कई भोजपुरी गीतों की भी रचना की है, जिसके साठ से अधिक एलबम निकल चुके हैं। कभी संपादक, तो कभी प्रभारी, कभी सलाहकार, तो कभी संस्थापक बनकर समाज में अपनी पहचान बनाई है। इनके नि: स्वार्थ कार्यों को देखते हुए, इन्हें सैकड़ों सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। सृजनधर्मी, सेवाकर्मी, धर्मनिष्ठ, कर्मनिष्ठ, साहित्य पुजारी लाल बिहारी लाल जैसे व्यक्ति विरले ही होते हैं, जो अपना पूरा जीवन हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में लगा देते हैं। इन्होंने कई गोष्ठियों का भी आयोजन करवाया है, ताकि रचनाकारों को नया मंच मिल सके। हमारा मैट्रो के साहित्य टी वी चैनल में भी मुख्य संपादक की भूमिका निभा रहे हैं। इनका जीवन हम सबके लिए एक प्रेरणास्रोत है। सीमित संसाधनों के बीच अपनी मेहनत और लगन से इन्होंने जिस मुकाम को पाया है, यह अत्यंत प्रशंसनीय है। इनकी सेवा अनवरत जारी रहे, ईश्वर से यह प्रार्थना है। ऐसे मिलनसार और आत्मीयता से भरे व्यक्तित्व से मिलने की मैं आकांक्षी हूं । आपका स्नेह और आशीर्वाद बना रहे, ऐसी ही कामना है। उनकी लिखी कुछ पंक्तियां आपके सामने रखना चाहूंगी, जो देश की जर्जर होती स्थिति को दर्शाने में सक्षम है –
सब कुछ महंगा हो रहा इस देश में
आम जन अब तो जी रहा क्लेष में
घोटालों का देश, अब रख दो नाम जी
अब तो बहुत डर लागे मोहे राम जी।
ऐसी प्रतिभा को कोटिशः नमन। ईश्वर से इनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए मैं अपने शब्दों को विराम देती हूं।