मैं, अर्थात आप ही की तरह साधारण जन,ग्राहक, उपभोक्ता,
तथा बैंक का सामान्य कर्मचारी व
मध्यम स्तर तक का अधिकारी,
जिसे अपने ईमानदारी से कर्तव्य
पालन करते हुए परिवार का भरण पोषण करना है। ग्राहक
व ये कर्मचारी अपनी पूंजी की
सुरक्षा व ऋण ले कर जीवन स्तर
को ऊंचा उठाने की आंकाक्षा को
ले कर सदा सर्वदा मिल कर काम
सौहार्दपूर्ण करते रहे हैं, ये बैंक,
राष्ट्र, समाज के हित मे सोचते हैं,
ये बैंक की प्रगति में सांझेदार हैं,
गर बैंक डूबता है, तो ये किसी भी
रूप में जिम्मेदार नहीं हैं।
इस के जिम्मेदार हैं, वो,अर्थात बड़े बड़े करोडों,अरबों, खरबों की सम्पत्ति के मालिक बैंक के
सबसे बड़े उच्चपदधिकारियों को
लुभा कर विशाल प्रोजेक्ट्स के
लिये विशाल स्तर पर ऋण ले लेते
हैं, मिलीभगत से मिला ये ऋण मिलजुल कर ही डकार जाते हैं।
चाहे शासन किसी भी दल का रहा
हो,इनकी हमेशा पौबारह रहती है,
अभी पिछले दिनों कई बैंक धराशायी हुए,अभी इसी सप्ताह
यस बैंक के धड़ाम होने से हड़कंप मच गया। साख बचाने के
नाम पर रिज़र्व बैंक स्टेट बैंक को साथ ले आया।16 वर्ष पहले ही अस्तित्व में आये इस बैंक का 11000 करोड़ रुपये का एन पी ए है। भाजपा सरकार को 2017 में ही पता चल गया था कि देश के सबसे चौथे बड़े प्राइवेट बैंक की
हालत खराब है। 6355 करोड़ रुपये का एन पी ए रिज़र्व बैंक से
छुपाया। डी एच एफ़ एल,आई एल&एफ़ एस, अनिल अंबानी ग्रुप को दिये ऋण पूरी तरह डूब
गए,खुद को दिवालिया घोषित करा दिया। 600 करोड़ रुपये बैंक
के मालिक, सी ईओ राणा कपूर
पत्नी व बेटियों की कम्पनियों के
नाम पर डकार गए। बैंक बचाने के नाम पर 5000 करोड़ रुपये कम ब्याज पर रिज़र्व बैंक दे रहा है,2450 करोड़ रुपये स्टेट बैंक
निवेश कर रहा है, यह सब अपनी
भूल छुपाने व ग्राहकों का विश्वास
बरकरार रखने के नाम पर किया
जा रहा है, विजय माल्या सरकारी
बैंकों के 9000,नीरव मोदी मामा
सहित 14000 करोड़ ले कर चंपत हो गये, उन्हीं दिनों कुछ और कम्पनियां के नाम भी5000
करोड़ डकार जाने का जिक्र हुआ
था। ये सब हड़पा हुआ धन हम सब लाखों करोड़ों भारतीयों के
टैक्स का ही तो है। ढाई लाख
करोड़ से ऊपर का एन पी ए है
सब बैंको का।आखिर हमारे दर्द को कौन समझेगा? भाजपा कब तक कांग्रेस को रोती रहेगी।
माल्या ,नीरव आपके राज में भागे हैं, यस बैंक आपकी जानकारी में
होते हुए एकाएक ‘नो’हो गया ।
ऊपर से माननीया वित्तमंत्री जी
कहती हैं कि बैंक कर्मचारियों का
व्यवहार जनता के साथ ठीक नहीँ
हैं,29 माह हो गए बैंक कर्मियों का वेतन समझौता नहीं हो पाया है। यही बैंक कर्मचारी नोटबन्दी के समय बैंक वीर थे,अब तुम्हारी
आंखों के शहतीर हो गए। केन्द्रीय
व बैंक कर्मियों के वेतन में आधे से
कुछ कम का अंतर है।बैंक क्लर्क
का आरम्भिक वेतन 22000 तो
केंद्र में 36000 बैंक अधिकारी के
वर्ग 44000,58000,76700 तो
केंद्र 80000,95000,110000
कभी केंद्रीय सरकार की नौकरी
छोड़ कर बैंक को तरजीह देते थे,
मैं 1983 में केंद्रीय सरकार की नौकरी छोड़ बैंक में आया था,3
साल पहले सेवानिवृत्त होने तक
मेरा वेतन केंद्रीय कर्मी के आधे से
थोड़ा सा अधिक था, मेरी पेंशन
भी अब से डेढ़ गुणा होती।
बैंक कर्मियों पर काम का दबाव है
स्टाफ आधे से भी कम है, बिना
कुछ अतिरिक्त मिले रोज़ दो ढाई
लेट सिटिंग देनी पड़ती हैं, न पूरा
हो सकने वाले टारगेट दिये जाते
हैं, हर सरकारी योजना को बैंक
कर्मियों पर लाद दिया जाता है।
माननीय महामना मोदी जी,जिन
22 करोड़ जन धन खातों का
देश विदेश में महा गुणगान कर
आप दोबारा सत्ता में आये, इसके
लिये बैंक कर्मियों की अथाह
अथक मेहनत थी,हरेक ने दिन रात एक कर काम किया, आप की नोटबन्दी में आधी रात तक
काम करते रहे, आपके जेटली
जी जो आज दुनिया मे नहीं है, ने
स्वयं आगे बढ़ कर कर समय पर
बैंक समझौता करने को कहा था,
पर 29 माह बीत गए,बेचारे बैंक
कर्मी हताश, निराश, चिड़चिड़े
नहीं होंगे तो और क्या होगा,ऊपर
से काम का दबाव और बढ़ता जा
रहा है। ऊपर से दबाव दे कर ऋण
दिलवाना, डूब जाने पर फिर उसे ही उत्तरदायी ठहराना, कुंठित व
लाचार बना देता है, आज बैंक कर्मी शूगर,उच्च रक्तचाप जैसी
बीमारियों से पीड़ित हैं।मेरा दावा है यदि आज पहले की तरह बैंकों
में गोल्डन शेक पालिसी एक बार फिर ले आएं तो उसके दायरे में आने वाले 95 प्रतिशत कर्मचारी
उसे स्वीकार कर लेंगें,आज बैंक
कर्मी त्रस्त है,बैंक डूबने की इन
घटनाओं ने एक आम बैंक कर्मी की छवि को छिन्न भिन्न कर दिया
हैं, बड़े बड़े घोटाले सरकार की शह पर बैंकों के चैयरमेन व जी एम करते रहे।वीडियोकोन, जे पी
ग्रुप,भूषण स्टील, रुचि सोया आदि के लाखों करोड़ों रुपये कुछ
सैंकड़ों करोडों में राइट ऑफ के नाम पर कुर्बान हो गये। अब दस
बैंक की जगह चार बैंक कर दोगे
तो क्या सूरत बदल जायेगी, पहले
सीरत बदलो ऊपर वालो, नहीं तो
नीचे कल एक और बैंक के फेल
होने की खबर आ जायेगी।
मुझे इस पर एक कहानी याद आती है, एक लाला सेठ के पास
4 कर्मचारी काम करते थे, लाला
हर साल,दो साल में बीमा कम्पनी को विश्वास में ले कर खुद चोरी करा रकम हड़प लेता था, फिर
उन कर्मचारियों को चोरी हो जाने
का बहाना लगा वेतन न बड़ा कर
उसी में काम चलाने को कहता था
बिल्कुल यही हालत बैंक कर्मियों
की है।अब तो बैंक कर्मियों के रिश्ते उनकी इस व्यथा को जान
कर नहीं होते, कभी यही बैंक वाले मोस्ट डिमांडिंग थे। बिना
छुट्टी लिये सरकार का उसकी मर्जी अनुसार हुकम बजाते रहो,
खबरदार जो वेतन बढोतरी का
नाम लिया, यहाँ बैंक घाटे में चल
रहे हैं। आई बी ए सरकार की कठपुतली बना है, यूनियन नेता
तो अपनी दुकानें चला रहे हैं,
समझौता हो गया तो उनको कौन
पूछेगा,गर जैसे तैसे कम मांग पर
हो भी गया तो लेवी मांगने आ जाएंगे, हर माह 10 लाख बैंक
कर्मियों के चन्दे पर हवाई यात्रा,पिकनिकनुमा मीटिंग,
ऐशोआराम, मनपसंद पोस्टिंग
बैंक कर्मियों का हित जाए भाड़
में।
अब समय आ गया है, देर बहुत अधिक हो चुकी है, बैंककर्मियों
के सब्र का इम्तिहान न लेते हुए
जल्द समझौता हो,बैंकिंग सिस्टम
में परिवर्तन हो,हर हालत में पहले
उच्चपदधिकारियों की जवाबदेही
हो,आखिर उनके ही आदेश पर
निचले स्तर के अधिकारियों को
ऋण देने पड़ते हैं। एक डॉक्टर से
गलती हो जाये तो मरीज़ भुगतता
है, पुल निर्माण में कुछ कमी रह
जाये तो लोग मरते या घायल होते
है, पर बैंक अधिकारियों द्वारा
स्वीकृत ऋण ले कर बड़े बड़े उद्योगपति उसे हड़प जाएं तो
सारा दोष इन्हीं पर, चाहे सब
कुछ ऊपर की मिलीभगत पर
हुआ हो। यदि बैंकिग प्रणाली
में आमूल चूल परिवर्तन न किये
गये तो हालात बदतर होते चले
जाएंगे। सुचारू बैंकिंग व्यवस्था
ही राष्ट्र की रीढ़ है। जिन बैंक कर्मियों के बल पर पूरी अर्थ
व्यवस्था टिकी है, तो उनका
सम्मान किया जाना,उनकी सभी
भावनाओं को समझना बहुत
जरूरी है। व्यथित ह्रदयों के बल
पर पांच लाख ट्रिलियन डॉलर की
अर्थव्यवस्था कैसे बनेगी। वित्त मंत्री जी आंखे मुंदने से कबूतर दिखना बन्द हो सकता है, पर उसकी फड़फड़ाहट जरूर सुनाई
देगी।
सरकार व हमें मिल कर हर क्षेत्र
में सफलता के नए कीर्तिमान
स्थापित करने होंगे। बैंककर्मी हर
रूप में संतुष्ट हों,सुदृढ़ बैंकिंग
व्यवस्था हो, रिज़र्व बैंक अपने
निगरानी तन्त्र को मज़बूत करे,
बिना किसी भेदभाव के हर
दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिले,सही शुरुआत तो करनी ही
होगी,”कौन कहता है, आसमां में
छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर
तो तबियत से उछालो यारो!”और
सही नीयत से उछाला पत्थर ,नई
फ़िज़ां लायेगा और इस में आएगी
उमंग से भरी नई बहार,यहीं से होगा, न्यू इंडिया ,नए भारत का
निर्माण,जहाँ सुख समृद्धि और
खुशहाली की नई इबारत लिखी
जायेगी।
-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’
कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरि०)
मो०9034365672