भारत में विचारधारा के खींचतान में आजकल कई समाज लहालोट है । जब भी कोई सफल व्यक्ति कही सफलता पाए नजर आता है तो उसे ये निठल्ले जातिवादी समाज वाले अपनी जाति में खीच कर उसकी सफलता को चीड़ फाड़ देते है । अब बात करें ऐसे निठल्ले घिन्नरबाजों की तो अब मंडल बंडल जैसे नए नवेले घिन्नरबाज जाति वाली राजनीति से आग फूंक रहे । मनुवाद के खिलाफ खड़े होकर खुद के खोपड़े में अगरबत्ती लगा कर दूसरो को तमाशा दिखा रहे ऐसे में अब जब आईएएस का परिणाम आता है तो फलां मेरी जाति का हैं उसके सिलेक्ट होने पर बधाई हमारी जाति का नाम रोशन हुआ ! अगर जाति का न भी हो तो लिखने में क्या जाता है वैसे ही क्रिकेट में भी कुछ चमनचंटो ने सूर्य कुमार यादव को अहीर बता बता कर ऐसे रेला की इनकी जाति वाली आदत बदबू कर गई और प्ले ऑफ से नॉक आउट तक के बीच मनुवादी शुभमन गिल ने ऐसी भारी भरकम बंबेट पारी खेली की स्काय जैसे ऐसे वैसे को हवा भी नहीं लगी और एक ही मनुवादी ने बड़े मैच इन घिन्नरबाजो की हवा टाइट कर दी । राहत इंदौरी का एक शेर है जो मैं मुम्बई फैंस पर छोड़ रहा कि न किसी हमसफर से न किसी हमनसी से निकलेगा , सुनो ! बेटा एमआई नामक कांटा हमीं से निकलेगा । फिल्म गैंगस आफ वासेपुर में रामाधीर सिंह जी ने एक कालजई संवाद बोला था कि बेटा इंडिया में जबतक सिनेमा है पब्लिक अइसही च्यूतिया बनती रहेगी ठीक वैसे ही राजनीति और क्रिकेट में भी डायलॉग चल रहे इन मनु विरीधियो के ,इस डायलॉग पर उनके छर्रे खूब लहालोट होते हैं,पर वो ये भूल जाते हैं कि रामाधीर सिंह जी का आकलन पूरी तरह से गलत था,तभी तो रामाधीर सिंह जी फिल्म के लास्ट में बुरी तरह पेले गए थे, दरअसल सिनेमा च्यूतिया नहीं बनाता,जीवन जीने की कला सिखाता है, जिसने सीख लिया उसकी लाइफ सेट,आजतक हजारों फिल्में आईं जिसमें किसी चिरकुट ने किसी अमीर खानदान की कन्या को सेट करके लाइफ सेट कर ली पर च्यूतियम सल्फेट टाइप लोग चुपचाप गए सिनेमा देखे घर आए खाना खाए और सो गए पर अपने केजरीवाल सड़ जी ऐसे नहीं निकले, उन्होंने बकायदा इस थीम से शिक्षा ग्रहण की, जिसका परिणाम यह रहा कि एक नौकरी से शुरुआत करते हुए आज हज्जारों करोड़ के बंगले में आम आदमी बने घूम रहे और घिन्नरबाजो तुम बस जाति जाति करते रहो । अखिलेश यादव, मायावती आजम चिच्चा ने हजारों करोड़ो का साम्राज्य खड़ा किया (अल्पज्ञानी लोग कृपया गूगल करें) और तुम जाति जाति कर के कभी रामचरित मानस तो कभी मनु स्मृति जलाते रहे पर इससे हुआ क्या ? कछु नाही ! ना कभी कछु होगा क्योंकि पंडित जी को देवत्व प्राप्त है और क्षत्रिय जी को सस्त्रत्व प्राप्त है तो उनका कुछ नही उखड़ेगा पर तुमहरी जाति के लोग तुमहरी ऐसा बजाएंगे की तुम बस जाति जाति करते शोषित के शोषित ही रह जाओगे ।
खैर वैमनस्य महापुराण की कथा फिर कभी लिखेंगे , फिलहाल ताजा कथा यह कि संगोल दंड स्थापित हो रहा । नव संसद भवन को मोदी जी खोल रहे । कांग्रेस अपने ही बिछाए जाल में लोटपोट हो रही । युगांडा नरेश बंडल दास लगातार जाति जाति करते करते और जे जे जे जे बोलते बोलते हकलाने लगे है उनके प्रबल समर्थको में खबरीस नाम का एक बालक रहता था, बचपन से ही उसकी तमन्ना एक महाघूसखोर टाइप सरकारी कर्मचारी बनने की थी,इसके लिए उसने आरटीओ सप्लाई ऑफिस कचहरी पुलिस डेवलपमेंट अथॉरिटी टाइप तमाम जगहों पर नौकरी के लिए कोशिश की पर इन जगह पर सलेक्शन सिर्फ और सिर्फ योग्यता (अधिक से अधिक धन देने की) के आधार पर ही होता था,सो बेचारे का सिलेक्शन कहीं ना हो सका, बाद में एक फसादी चैनल में एंकर हो गया, हालांकि पैसा उसे मोदी विरोध के दिया जाता था और पद उसे बंडल दास के महिमंडन के लिए दिया गया था, सो भागते भूत की लंगोटी सही सोच खबरीस ने चमचागिरी की नौकरी ज्वाइन कर ली, उनके गाल पिचके आंखें धंसी धंसी व बदन पर हड्डियां ही हड्डियां दिखती हैं ऊपर से कोई भी झपिला के चला जाता था, सो खबरीस खासा फ्रस्टेट थे, ड्यूटी भी महीने में तीस पैतीस दिन की लगती थी, ऊपर से उसका ब्योरा भी देना पड़ता था सो कुल मिलाकर जिंदगी एकदम झंड टाइप की ही थी तभी उसका परिचय एक बहुत ही मुच्छड़ टाइप के शोषित दलाल से हुआ जो उसे कुछ ले देकर संविदा पर जाति की राजनीति करके लोगो को भड़कता था । वह बिजली विभाग का लाइनमैन था, खबरीस ने बिजली विभाग के लाइनमैनों का खासा जलवा देखा था, कईयों ने तो अपने अंडर में कई कई लाइनमैन रख छोड़े थे,वैसे से भी बेरोजगारी उन्मूलन की दशा में ल से लेखपाल और ल से लाइनमैनों का योगदान देश हमेशा याद रखेगा, सो खबरीस में दिमाग लगाया कि क्यों ना दोनों की नौकरियां ज्वाइन कर लूं,दिन में एंकर और रात में लाइनमैनई कर तर माल काटूँगा,सो उसने सिलेक्शन करवाया और वह चौड़े से दोनों नौकरियां करने लगा और डबल माल पीटने लगा,चूंकि उन दिनों क्षेत्र के तमाम अल्पसंख्यक बहुसंख्यक लोग कटिया कलेक्शन/ मीटर स्लो/ मीटर फूंक डालना/ मीटर बाइपास करना टाइप अवांछित गतिविधियों में लिप्त थे सो खबरीस की वसूली टाइट थी,उन्हीं में एक था रणछोर, जिसके बारे में दुनिया कहती थी की हजार , मरल होइहें तब ई पैदा भईल होई, खबरीस ने उसे भी अर्दब में लेकर वसूलने की कोशिश की पर रणछोर भी कम न था, पब्लिक उसके लिए एकदम सही कहती थी, सो वह भी खबरीस के पीछे लग गया और बहुत जल्दी उसे जाति की हिस्ट्री पता लग गई कि कैसे इस जीरो टॉलरेंस वाले माहौल में भी उसका पार्टनर डबल नौकरी कर रहा है,सो उसने चट पोर्टल पर इसकी शिकायत कर दी, और जरा संयोग तो देखिए यहां लाखों जेन्विन शिकायतें पोर्टल पर धक्का खा रही हैं पर उसकी वाली शिकायत में त्वरित कार्रवाई हुई,और चैनल ही बिक गवा । चैनल के एजेंट सरकार का विरोध करते रंगे हाथों पकड़े गए,उन्हें पूरे बीस साल यू ट्यूबिया बनने की कैद-ए- बामशक्कत व लाखों रुपए का चूना लगा, अब जाति के चक्कर में खबरीस पूरी तरह बर्बाद हो गए, काश कि वक्त फिल्म का जानी राजकुमार का वह डायलॉग याद रखा होता कि जिनके अपने घर शीशे के होते हैं वह दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते पांडे जी ! अब इसमें पंडित जी के आलोचक और भीम आलोचकों में मैं भी हूं और लंकापति जितना चाहें जलें लेकिन वह कभी उसे बंडल और भीम के जरिए वह अनुपमेय ख्याति नही प्राप्त होगी जो दिन दयाल उपाध्याय और वीर सावरकर को प्राप्त हुई । उधर जाति के ही चक्कर में एक स्काय की वजह से पूरी एमआई को शुभमन गिल ने तूफानी प्रहार से नॉक आउट के मृत्युलोक में दफन कर दिया और अपनी टीम को उस जगह ले जा खड़ा किया जहां से शोहरत और वैभव का आसमान शुरू होता है। शुभमन के पेलुआ प्रहार से स्काय समर्थक हवा में बिखरते नजर आ रहे । उस दिन जब कोहली गंडजरी मुद्रा के साथ त्रासदी-पुरुष में तब्दील हुए तो ये जातिवादी खुश थे की ब्रहाम्न सवरन को रेल रहा और आज जब स्काय को रेला तो बस नाचे नाचे बनकर कूचे से निकले । ये नए लौंडे अपनी दहकपेल प्रतिभा झंकार के बल पर दहशत, खौफ और नैराश्य पैदा कर देते हैं तो इन्हे जाति के बंधन में ना बांधो तथा एक काम भर की रोशनाई और वैभव-गुलाल लूटने के बाद बांझ टट्टू बनकर फिर ऊसर में धूल फांकते हैं । लेकिन कुछ दिन ही सही —- ये अपना आतंक और जोशीला तूफ़ान बरकरार तो रखते ही हैं । बतौर त्रिपाठी जी,आखिर मनुवादियों ने एक सीधे साधे भोले भाले शोषित वंचित को फर्जी मामले में फंसा ही दिया,दरअसल सोमालिया के किसी नगर में एक बेहद सीधा सादा भोला-भाला शोषित वंचित टाइप इंसान चंद्रमा प्रसाद रहता था,जिसकी कई पीढ़ियों पर मनुवादियों ने बड़ा घनघोर जुल्म किया था,बताते हैं वेद सुन लेने के कारण उसके पुरखों के कान में गरम शीशा पिघला के टपकाया गया था टाइप्स,हालांकि खुद उसके परिवार के किसी व्यक्ति ने किसी तरह का कोई अत्याचार नहीं हुआ था पर वामन मेघाराम और क्यूटिया मंडल टाइप एजेंडेबाज बलमुआ टाइप चिरकुट एक से एक अत्याचारों की कपोल कल्पित गल्प कथाओं से दिन्न रात समाज को जागरूक करते रहते थे और राज्य सभा के दिवास्वप्न देखा करते थे, इससे चंद्रमा प्रसाद के मन में बड़ा ही आक्रोश भरा था, ऊपर से बाल्यकाल से ही वह मिथुन चक्रवर्ती की चांडाल जल्लाद चीता जख्मी सिपाही टाइप फिल्में खूब देखता था सो उसकी बड़ी तमन्ना थी कि बड़ा होकर वह भी मनुवादियों से अपने पुरखों का भरपूर बदला जरूर लेगा, बाल्यकाल से ही वह पढ़ने में बड़ा ही मेधावी था, परीक्षा कोई भी हो पर हर परीक्षा में वह पूरे 100 में 0 नंबर लेकर आता था, बिरादरी के लोग उसकी इस प्रतिभा से खुश होकर कहते थे कि चंद्रमा प्रसाद जरूर ही कोई बहुत बड़ा अफसर बनेगा,इन जीरो नंबरों के बदौलत वह डॉक्टर इंजीनियर आईएएस आईपीएस कुछ भी बन सकता था पर उसे तो अपने पुरखों का बदला लेना था सो उसने चुनी पुलिस की नौकरी, उसकी नौकरी के दौरान उसका सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य था दबा के पैसा कमाना और मनुवादियों की अकल ठिकाने लगाना, और इसका कोई भी मौका वह छोड़ता नहीं था,इलाके में कांड कोई भी करता पर फंसाता वह किसी मनुवादी को ही था, इस तरह वह मनुवादियों से वह चुन चुन कर बदला ले रहा था, इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी वह मनुवादियों की खूब बजाता था, उनके ऊपर नाना प्रकार के उल्टे सीधे अनर्गल टाइप आरोप लगाया करता था, यद्यपि मनुवादी उसकी पोस्ट से काफी तिलमिलाते थे पर उसे बाबा साहब के विधान पर पूरा भरोसा था जिसने उसे विशेष ताकतें दे रखी थीं,उसके इस कृत्य पर उसके छर्रे उसका खूब जमकर समर्थन करते थे, इससे वह फूला न समाता था, यह सब बिल्कुल शानदार तरीके से चल रहा था,पर एक दिन मनुवादियों को भी मौका मिल गया, दरअसल विभागीय अधिकारी कर्मचारियों का एक व्हाट्सएप ग्रुप था, एक दिन शाम को एक सजातीय टाइप अपराधी द्वारा पिलाई हुई प्रचुर मात्रा में आयातित प्रचुर दारू के प्रभाव उसने उस ग्रुप में मनुवादियों के खिलाफ खूब जहर उगला,संयोग से उस ग्रुप में कुछ मनुवादी भी थे, उन हठीयों ने ग्रुप में तो कुछ नहीं कहा पर उन सबों ने साजिश के तहत इस बिचारे भोले भाले इंसान के इन मैसेजों को बड़े हाहाकारी तरीक़े से वायरल कर दिया,लिहाजा जनता में उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की भारी मांग होने लगी, बस फिर क्या था मनुवादी अफसरों को मौका मिला और तत्काल प्रभाव से उसे सस्पेंड कर उसके खिलाफ कड़ी विभागीय जांच की अनुशंसा कर दी गयी,वह बेचारा इन मनुवादियों के सामने बहुत घिघिआया, पर दुष्ट मनुवादियों ने उसकी एक न सुनी और उसे सस्पेंड करके मुकदमा दर्ज करा दिया, तब से वह दिन-रात नीलाम्बर देवता की प्रतिमा के सामने बैठा आंसू बहा रहा है, उसके कट्टर समर्थक व छर्रे भूमिगत हैं।
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर