Latest Updates

शेष होते वर्ष के अवशेष

निर्जीव खिलौनों से बहलते थे अब तक बच्चे इस जहान के

रोबोटिक शिक्षा ने योग की उम्र में भोग भरा मन में इंसान के

✍️

स्वामी विवेकानंद जी का एक कथन है कि अगर किसी देश को उन्नति की राह पर लाना है तो उस देश के बचपन को शिक्षित कर दो।कितनी गहराई है इस कथन में। कितनी दूरदर्शिता है इस विचार में कि हम जिस चीज पर निवेश करेंगे, उसी चीज़ से ही हमें फल प्राप्त होगा।लेकिन आज हमारे देश के हालात किसी से छिपे नहीं हैं।कुछ अपवादों के अलावा शिक्षा का आधार ही व्यापारिक केंद्र बन गया है।बच्चों को ऑनलाइन क्लास समझ में आ रही है या नहीं इससे ज़्यादा ज़्यादा ज़रूरी है कि सबको अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवानी है।कुछ बच्चे कैमरा ऑफ़ करके अपनी ही दुनिया में मस्त हैं क्यूँकि उन्हें कोई देख नहीं रहा, और अगर देख रहा है तो उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा।अभिभावकों की मनोदशा अपनी जगह पर असंतुलन का शिकार हो रही है।सबकी उम्मीदों पर खरा उतरना तो वैसे भी असंभव ही है लेकिन अब तो मानसिक तनाव के परिणाम स्वरूप लगभग

नामुमकिन ही होता जा रहा है।मन बहलाने के लिए या यूँ कहना ज़्यादा उचित होगा कि अपने मन की भूख मिटाने के लिए आजकल हर कोई एक ही ड्रग का सहारा ले रहा है, वो ड्रग है “स्क्रीन”।आज हमारे देश की हर पीढ़ी स्क्रीन के नशे में लिप्त है।अगर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो न तो किसी के पास कोई दिशा है और न ही मार्गदर्शन।ऐसे में समुन्दर में उतरे नौसिखिए तैराकों का जीवन ख़तरे की घंटी बजा रहा है।इस घंटी को अनसुना करना तो बहुत आसान है, लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति स्वामी विवेकानंद का संदेश अपने जीवन में अमल करने के लिए कार्यरत हैं तो उसके लिए इस ख़तरे की घंटी को नज़रअंदाज़ करना बहुत मुश्किल है।

✍️

बोरियत कितनी बड़ी विडंबना है आज हमारे समाज की

जम कर धज्जियाँ उड़ा रही हर पीढ़ी रस्म ओ रिवाज़ की

✍️

महामारी की चपेट में लगभग दो साल तक बच्चों को ऑन लाइन शिक्षण से जूझना पड़ा, बड़ों को वर्क फ़्रॉम होम करना पड़ा।तकनीकी शिक्षा के इस नए रूप ने बच्चों का मानसिक विकास तो किया मगर शारीरिक और मानसिक असंतुलन का उदय हुआ जो कि लगभग सबके लिए हानिकारक ही सिद्ध हुआ।एक तरफ़ तो वातावरण में प्रदूषण के कारण स्कूल बंद हैं, दूसरी तरफ़ ऑनलाइन क्लास के कारण हर एक बच्चे के लिए स्क्रीन टाइम का प्रबंध भी किया गया है।

अपरिपक्वता की उम्र में एक ऐसा खिलौना बच्चों के हाथ में दे दिया गया है, जिससे बहुत से बच्चे अपनी दिशा से भटक रहे हैं और मानसिक अवसाद का शिकार हो रहे हैं।बेहूदा गानों पर अर्द्ध नग्न अवस्था में नृत्य अपलोड करना और लाइम लाइट में रहने के लिए बेमायना  सैल्फियों के साथ स्टेटस अपडेट करना, और अपने मन की बात एक दूसरे से न कह पाने के कारण सुलगती चिंगारी को कटु प्रसंग बनाकर विष भरे शब्दों के साथ ऑन स्क्रीन उल्लेखित करना, आज हर उम्र का शग़ल और अपरिपक्व मस्तिष्क का साक्षात उदाहरण बनता जा रहा है।ये किस दिशा पर चल पड़ा है हमारे देश का बचपन, ये किस मनोदशा से चालित है हमारे देश का युवा वर्ग। ये किस भूख से त्रस्त है हमारे देश का तथाकथित विकास।

आज हर एक व्यक्ति की ये ज़िम्मेदारी बनती है कि अपने आस-पास के हर उम्र के व्यक्ति की समुचित देखभाल का दायित्व निभाए, जिससे हर उम्र के व्यक्ति की मानसिकता को उचित पोषण दिया जा सके।इस मानसिक अवसाद की स्थिति से निपटने के लिए केवल निःस्वार्थ प्रेम ही एकमात्र विकल्प है।

एक और वर्ष समाप्ति की राह पर है, कुछ ही दिनों में शेष होते वर्ष के अवशेष रह जाएँगे। कितना अच्छा हो कि हमारे देश की हर पीढ़ी मानव उत्थान के संकल्प के साथ नववर्ष का स्वागत करने के लिए खुद को तैयार करे।

✍️

अंधेरा हर क़िस्म का भगाएँ

निःस्वार्थ प्रेम के दीप जलाएँ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *