कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
रावण की ऊंचाई और बढ़ा दी गई है । रावण तो हर साल ऊंचा होता जा रहा है, उसे जितना भी ऊंचा हम बनाते जा रहे हैं उतना ही रावणीय कृत्य भी बढ़ता जा रहा है । हम तो रावण के पुतले का दहन इस विचार के साथ करते हैं कि रावण के पुतले के जलने के साथ ही साथ हमारी बुराई, हमारे अंदर के रावणीय कृत्य का नाश भी होता जायेगा….पर ऐसा हो कहां रहा है । रावण का पुतला तो हम हर साल उत्सव मनाकर जला रहे हैं पर न तो समाज में छिपे रावणों भस्म हो पा रहें हैं और न ही हमारी अंदर का रावण ही जल पा रहा है । हमारी परंपरायें संदेशपरक परंपरायें हैं नौ दिवस की माॅ दुर्गा की उपासना और दसवें दिन बुराई का प्रतीक रावण का दहन हमारी अंदर उत्साह तो पैदा करती ही है साथ ही हमें अपनी बुराई को त्याग देने की याद भी दिलाती है । पर हम तो वर्षों से रावण के पुतले का दहन इसी विाचारधारा के साथ करते जा रहें कि हम बुराई को जला रहे हैं पर जल कुछ भी नहीं रहा है । बढ़ती आतंकवादी घटनायें और बढ़ते अपराध हमें चिन्तन करने को विवश कर रहे हैं कि केवल ऊंचा रवाण का पुतला बना देने से और उसे प्रहसन के साथ जला देने से ही रावणों का अंत नहीं होने वाला है । हर वो व्यक्ति जो अपराध करता है वह हमारे लिए रावण ही तो है । दिल्ली में जिस खूंखार आतंकवादी को घटना का अंजाम देने के पहले ही पकड़ लिया गया वह भी तो ऐसे ही समाज का अंग है जो राक्षसी प्रवृति को अपनाए हुए हैं, ऐसे राक्षसों को भस्म करने की भी तो आवश्यकता है । निरीह लोगों की जान लेने का मंसूबा बांधे ऐसे लोग हमारे समाज के योग्य तो हो ही नहीं सकते । आतंकी पकड़ा गया, वो मूर्ख था जानता नहीं था कि नवरात्रि में तो माॅ दुर्गा की उपस्थिति ऐसे ही राक्षसों के अंत के लिए होती है । पकड़ा गया, इसके पूर्व भी और भी आतंकवादी पकड़े जा चुके हैं हमारी पुलिस और हमारी सेना जिस बहादुरी के साथ इन आतंकवादियों को सबक सिखा रही है वह हमारे लिए गर्व का ही विषय है । जाने कितने आतंकवादी हमारे सैनिकों द्वारा मार डाले गए । पर अभी बहुत कुछ करना शेष है । आतंकवादी जैसी घटना तो उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में भी हुई । दो चार पहिया वाहनों ने आन्दोलनरत किसानों को कुचल डाला । जो कुचले गए उन्हें तो कतई भरोसा तक नहीं था कि कोई ऐसा भी कर सकता है, जिसने ऐसा किया वो अट्ठहास कर रहा है रावण के जैसा ‘‘देखो मेरा विरोध करोगे तो ऐसे ही कुचल दिए जाओगे’’ । दिवंगतों की लाशों पर चीत्कार कर रहे परिजनों के आंसु उनके लिए कोई मायने नहीं रखते । वे आंसु तो उन लोगों के लिए भी कोई मायने नहीं रखते जो इस घटना के बाद लखीमपुर में मंडरा रहे हैं । उनका अपना स्वार्थ है इसलिए ही तो संवेदना का नकाब ओढ़कर सान्तवना देते दिखाई दे रहे हैं । वे पूरे प्रहसन के साथ सरकार को कठघरे में खड़ा करने पर तुले हुए हें । उनके लिए मृत व्यक्ति और उनके परिवार को दी जा रही सान्तवना केवल कुर्सी के लक्ष्य कर ओर ही ईशारा करती दिखाई दे रही है ।पर इससे एक बात अच्छी हुई कि यदि ऐसा नहीं होता तो संभव है कि घटना की जांच की गति कछुए जैसी बनी रहती है । हम समझ चुके हैं कि जब तक जनता जाग्रत नहीं होती तब तक किसी भी प्रकार की घटना को सुप्त पड़े रहने दिया जा सकता है, पर आम जनता अपने आक्रोश को निकालने सड़कों पर उतरती है तब आरोपी कोई भी हो उसे सजा भुगतना ही होता है । अभी तो जांच चल रही है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि केन्दी्रय मंत्री का पुत्र इस घटना का सीधा जिम्मेदार है, पर सारे संकेत तो उसी की ओर इशारा कर रहे हैं । ‘‘समरथ को नहीं दोष गुसांई’’ । वे समरथ है इस कारण घटना के बाद भी नामजद रिपोर्ट के बाद भी आजाद घूमता रहा आरापी । और वे मंत्री महोदय इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी अपना बादशाहत में मशगूल हैं इन्ही के लिए ही तो बोला जाता है ‘‘समरथ को नहीं दोष गुसाई’’ । आम आदमी इतना सामथ्र्यवान नही होता उसके खिलाफ रिपोर्ट होते ही उसे अरेस्ट कर लिया जाता है । वह चीखता रहता है हुजुर मैं बेकसूर हूॅ पर पुलिस उसकी एक नहीं सुनती । वह मंत्री पुत्र की भांति उसे आमंत्रण देने भी नहीं जाती कि ‘‘भैया थाने आ जाना आपके बयान लेने हैं’’ यह ती मंत्रीजी का सामथ्र्य है । कानून सभी के लिए बराबर होते हें ऐसा अब केवल शाब्दिक होकर ही रह गया है । उत्तरप्रदेश की इस घटना ने मुरझाए चेहरों पर नई जान डाल दी है । विपक्ष को लगने लगा है कि जैसे ‘‘उसके भाग्य से छींका’’ टूट गया हो । वह चीख-चीख कर अपनी संवेदना दिखा रहा है । इस संवदेना में प्रहसन ज्यादा नजर आ रहा है । वे लखीमपुर खीरी के मार्ग पर अपना आना-जाना शुरू कर चुके हैं । जब तक चुनाव नहीं हो जाते तब तक उन्हें इस मुद्दे को जीवित रखना होगा । जो दिवगंत हो गए है उन्हें हो सकता है कि उनसे ज्यादा कुछ मतलब न भी हो । इधर राजस्थान में भी एक दलित को पीट-पीट कर मार डाला गया । उसका वीडियो भी वायरल हो गया । आधुनिक टेक्नालाजी कुछ भी तो छिपाकर नहीं रखने देती । भाजपा को एक खोखला ही सही पर कहने को हथियार तो मिल ही गया है । वो भी अपनी आवाज की कसरत करने लगे हैं । वे विपक्ष को घेरने की कोशिश कर रहे हैं और विपक्ष उन्हें । आदान-प्रदान का जमाना है इसे ही तो विनिमय का सिद्धांत कहते हैं । तुमने आरोप लगाए तो हमारी बारी है हम तुमको कठघरे में खड़ा करेगें । कोई ये नहीं कह रहा है कि आखिर ऐसी घटनायें हो ही क्यों रहीं हैं । हम तो हर साल रावण का पुतला इसी भावना के साथ जलाते हैं कि हमारे समाज में व्याप्त रावण जैसे व्यक्तियों का भी नाश हो जाए पर ऐसा हो ही नहीं रहा है । रावणों की संख्या तो बढ़ती जा रही है । हम तो केवल पुतले पर ही आग लगाकर अपने हिस्से के नाटक को पूरा कर लेते हैं पर इस के साथ जो जलना चाहिए वह जल ही नहीं रहा है । जम्मू-कश्मीर में निरीह लोगों को आतंकवादी अपना निशाना बना रहे हैं अब वे स्कूल की सुरक्षित चाहरदिवारी के अदंर भी तांडव फेलाने लगे हैं । उन्होने दो शिक्षकों को मार डाला । हमारी संवेदनाओं के बोल तो इस हत्याकांड पर भी निकलने चाहिए । एक शिक्षक तो समाज का निर्माण करता है आतंकवादियों का निर्माण तो पाकिस्तान जैसे राष्ट्र करते हैं, हम ऐसे ही राष्टों को राक्षसराज की संज्ञा देते हैं फिर ठीक वैसे ही जैसे रावण के राज्य को वीर हनुमान जी ने जला दिया था उसे भी जला देते हैं । जो हमारी संस्कृति और परांपराओं को जानते समझते हैं उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम केवल रावण के पुतले को ही नहीं जलाते समय आने पर रावण और उनके परिजनों का वध भी कर देते हैं । पश्चिम बंगाल में तो दुर्गा उत्सव का त्यौहार बहुत धमधाम से मनाया ही जाता है । महिनों की मेहनत के बाद बनने वाले पंडाल देखने के लिए ही भीड़ हो जाती है । इसी पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी चुनाव जीत गई । उनके लिए यह आवश्यक था भी वरना वे मुख्यमंत्री नहीं बनी रह पातीं । भवानीपुर की सीट से उनका चुनाव जीतना लगभग तय ही था । भाजपा सहित सारी पार्टियां चुनाव लड़ने की केवल औपचारिकता ही कर रहीं थीं । वे एक बार तो हार ही चुकी हैं पर तब बात कुद ओर थी अब बात कुछ और है । अब तो भाजपा ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं वे समझ गए हैं कि यहां ज्यादा कुछ होने जाने वाला नहीं हैं । उनके पास जो विधायक है यदि उनका ही रखरखाव ठीक से कर लिया तो कुछ नाक बची रहेगी वरना शोभेन्द्र अधिकारी के भरोस ही सब छोड़ दो हो और भूल जाओ । ऐसा लगता भी है कि जिस तरह भाजपा के चुने हुए विधायक एक-एक कर टीएमसी में शामिल हो रहे हैं उससे आने वाले पांस सालों में कुछ विधायक बचे रहें यह भी बहुत माना जायेगा । ममता बनर्जी चुनाव जीतने के बाद भी रिलेक्स के मूड में नहीं हैं वैसे तो वे पांच सालों के लिए निश्चिंत रह सकती हैं पर वे अभी भी सक्रिय रहना चाहती हैं । उनके सामने दिल्ली की गद्दी का लक्ष्य है । वैसे तो कलकत्ता से दिल्ली वाकई दूर है पर वे केन्द्र सरकार को सत्ताच्युत करना चाहती हैं । उन्होने ताल ठोक रखी है पर क्या करें विपक्ष बिखरा हुआ है । इसका फायदा सत्ता को मिलता ही है । जब कांग्रेस सत्ता में थी तब भी उसे सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष को एक होना ही पड़ा था पर अब सत्ता पर भाजपा काबिज है……तो उसे उखाड़ फेकने के लिए सारे विपक्ष को एक होना होगा जो कठिन काम है । कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है । उसका उतार-चढ़ाव जारी है । पर हमेशा जब भी केन्द्र की राजनीति की बात आती है तो कांग्रेस मुख्य फोकस में रहती ही है । आज भी विपक्ष का सबसे बड़ा दल कांग्रेस ही है । ऐसे में कांग्रेस से दूरी बनाकर विपक्ष भाजपा को पराजित करने की मुहिम में कैसे सफल हो सकता है । चिन्तन वे करें जिन्हें सत्ता सुख भोगना है वे कर भी रहे होगें । हम तो आज रावण का पुतला जलाकर मान लेते हैं कि आगामी वर्ष हमें बुराई पर अच्छाई की विजय को याद दिलाता रहेगा । सभी को दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐं ।