लेखक: कुमार शैल।
साया बनकर साथ चलेंगे,
इसके भरोसे मत रहना। अपने हमेशा अपने रहेंगे
इसके भरोसे मत रहना।।
आज पूरी दुनियां अपनी नजरें अफगानिस्तान पर टिकाए हुए है, कोई कहता है कि ये अमेरिका की हार है तो कोई कहता है कि ‘जो वाइडेन’ की हार है, एक प्रश्न उठता है कि आखिर अमेरिकी सैनिक वापस क्यों चले गए? अरे, कोई आपकी सुरक्षा कितने वर्षों तक करेगा, 2, 4, 6, या 10वर्ष, विगत 20 वर्षों से अमेरिकी सैनिक अफगानी नागरिकों और वहां के नेताओं की रक्षा कर रहे थे यहां तक की 3 लाख की फौज को भी ट्रेंड किया था, परंतु जब कोई फौज, निरंकुश नेताओं के हाँथों की कठपुतली बन जाये तो परिणाम यही होगा, शायद समय रहते वहां के नागरिक अपने लिए इज़राइल नागरिकों से कुछ सीख न ले पाए यदि ऐसा होता तो वहां का हर बूढ़ा-बच्चा एक ट्रेंड सैनिक होता और तालिबानियों के आगे कभी घुटने नहीं टेकता आज तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर अपना आतंकी राज स्थापित कर चुका है,वहां की औरतें, बच्चे, बूढ़े, जवान सब बिलख रहे हैं, पर उन तालिबानियों के पाषाण चेहरों पर ज़रा सी भी शिकन तक नहीं आती, आये भी क्यों जब कथनी करनी मे फर्क होगा तो चेहरा पाषण रखना ही पड़ता है, ये परजीवियों की पहचान है। अफगानिस्तान को अब पंचशीर घाटी भी शायद बचा सके, वही पंचशीर जहां से मशहूर अहमद शाह मसूद ने यू. एन. की तोपों को भी मोड़ दिया था, वहाँ की फौज को नाकों चने चबाने पड़े थे, अब उसी का बेटा अहमद मसूद एक बार फिर अफगान को ललकार रहा है वहां के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह के साथ मिलकर।
हम भारतवासियों को जल्द ही अफगानिस्तान से सबक लेना चाहिए क्योंकि सुनने में आया है कि लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे न जाने कितने आतंकी संगठन अफगानिस्तान में अपना अलग-अलग चेकपोस्ट भी बना चुके हैं, ठीक है हमारी फौज बहुत काबिल है हमारे एयरफोर्स अच्छे हैं हमारे नेता भी कारगर साबित हो सकते हैं परंतु हमें अर्थात हम भारतीय नागरिकों को अभी भी समय रहते चेतना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि जब कुछ पाषाण चेहरे हमारे घर में भी घुस जायें और हमारे अपने लोगों की निर्मम हत्या कर दें और उन्हें गुलाम बना ले वैसे भी भारत को गुलामी करने की आदत एक लंबे अरसे से पड़ी हुई है। ठीक तालिबान की तरह हमारे बीच बैठे कुछ गद्दार कुछ देशद्रोही उनका साथ देने को उत्सुक होंगे और शायद परोक्ष-अपरोक्ष रूप से दे भी रहे हैं ।अफगानिस्तान की हालत जो आज हुई है उसका जिम्मेवार सिर्फ और सिर्फ वहां के लोग है क्योंकि उन्होंने अपने नेताओं पर भरोसा किया अपने उस भगोड़े रक्षा कर्मियों पर भरोसा किया, परंतु वह एक चीज भूल गए कि वह खुद पर भरोसा कर सकते थे, और खुद ले लिए लड़ सकते थे।