मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (सम्पादकीय)
एक बार फिर आप सभी को गांधी जयंती की बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं ।
पिछले वर्ष हमने गाँधी मनाई और स्वच्छता अभियान भी जोरशोर से चलाने की बात हुई । कुछ हद तक सफल भी हुए सफाई अभियान में । आपको भी स्मरण होगा कि गाँधी जी का एक चित्र् जो अधिकांश स्थानों पर देखा जाता है जिसमें गाँधी जी मुस्कुरा रहे हैं । आज मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो यदि गाँधी जी की आत्मा कहीं से भी देख अथवा महसूस कर रही होगी तक वास्तव में ही मुस्कुरा ही नहीं, अपितु खिल्ली उड़ा रही होगी ।
समाज, जिससे मन–तन और विचारों की स्वच्छता का हर वर्ष आह्वान किया जाता है किन्तु जिस प्रकार हर वर्ष हम रावण का दहन करते हैं, पुतला जलाते हैं , किन्तु प्रत्येक वर्ष बुराई के प्रतीक रावण का कद बढ़ता ही जाता है । उसी प्रकार कसमें–वादे–आचरण– सभ्यता–सत्य–अहिंसा का पाठ मानों किताबी पन्नों में सिमट कर रह गया है । एक दर्दनाक हादसाµबालिका की चीत्कार–तड़पन–भय और उसी दर्द के साथ दुनिया को छोड़ कर चले जाना । हमने देखा सुना था जिसे दिल्ली की निर्भया नाम मिल गया । अपराधियों को कठोर सजा भी मिली फिर भी कभी आंध्र प्रदेश की, कभी किसी और प्रदेश की और आज ‘हाथरस की निर्भया’ नाम मिल गया । परन्तु प्रश्न यह है कि न्याय कब मिलेगा ?
इस पर मिलकर न सिर्फ विचार करने की आवश्यकता है अपितु ठोर रणनीति के अन्तर्गत सरकार को नियम–कानून बनाने के साथ–साथ जीवन मूल्यों–मानव मूल्यों–संस्कारों को पोषित करने की आवश्यकता है । स्कूली शिक्षा से लेकर पंचायतों तक इसके लिए नियमित वर्कशॉप आयोजित करने की, नाट्य प्रस्तुतिकरण के माध्यम से भी इस संदेश को जन–जन तक पहुंचाया जा सकता है । किंतु आवश्यकता है संकल्प की, गाँधी जयंती पर आइये कुछ नया सोचें––––