नही है कोई रक्षक तेरा ऐ भारत की नारी।
करनी होगी तुझ को खुद ही अब अपनी रखवारि।
वन कालका या बन चंडी कौइ भी रूप अपना।
हाथों मे हथिआर लेकर, तू दैत्य संहार कर डाल।
कोई नही आयेगा आगे,कभी तुझ को बचाने।
पर आ जायेगें कैई राक्षस ,तुमको जिन्दा जलाने ।
बंद कर दे परवाह करना ,ऐसे अपाहिज समाज की।
जिन्हे परवाह ही नही है, अपनी बहू बेटियों के लाज की।
पहले सीता का हरण फिर द्रोपदी का चीर हरण।
और आज कई निर्भयाओं का हो रहा है रोज मरण।
पर यह गूँगा,बहरा, बेशर्म समाज बस एकदम खामोश है।
उछालने को किसी औरत पर कीचड़ आ जाता इसे होश है।
कभी तुम्हारे पहनावे पर उंगली उठाई जाती है।
कभी तुमहारी मर्यादा की सीमा बतायी जाती है।
कभी गर्भ में मर रही हैं ,कभी दहेज के लिये सड़ रही हैं।
आखिर औरत ही क्यों हमेशा ऐसी बलि चढ़ रही हैं ।
उठ जायो देश की बेटियों, लायो क्रांती सुरक्षा पाने की।
आज जरूरत है औरत को ही ,औरत का साथ निभाने की।
मोनिका शर्मा