नारी है इस जग की मूल
रे नर! दे न इनको शूल…..
त्याग, समर्पण, सेवा धर्म
करती यह तन्मय हो कर्म
रखती हरदम सबका मान
घर, आंगन की इनसे शान
झोंक न खुद आँखो में धूल
रे नर! दे न इनको शूल….
दिव्य गुणों से यह परिपूर्ण
करती विपदाओं को चूर्ण
साहस, धैर्य, पूर्ण है अन्तर्
लड़ती निर्भय और निरन्तर
समय भले कितना प्रतिकूल
रे नर! दे न इनको शूल……
बांध न पग में इनके बंधन
लगने दे सर पर जय चंदन
मर्यादा का है इनको ध्यान
करती कभी नहीं अभियान
संशय तेरा है सब निर्मूल
रे नर! दे न इनको शूल……
पावन, सूचि, प्रिय सम्बन्ध
समझ न इनको तू अनुबंध
इनसे ही शोभित संसार
मात्र नहीं नारी श्रृंगार
यद्यपि रूप सुकोमल फूल
रे नर! दे न इनको शूल…..
विविध रूप, नाना उपकार
यह शुभ, शोभा की अवतार
धर्मग्रन्थ सब वेद, पुराण
देते इसके विपुल प्रमाण
इनसे ही गौरव मत भूल
रे नर! दे न इनको शूल…..
ममता, नम्रता की यह मूरत
लक्ष्मी, शक्ति, सरस्वती सूरत
कभी करो न इनका निरादर
मिले इन्हें समुचित नित आदर
कर लेगीं फिर सब अनुकूल
रे नर! दे न इनको शूल….
नारी है इस जग की मूल
रे नर! दे न इनको शूल…..
डाॅ. राजेन्द्र सिंह “राही “