बाबू जी की याद बहुत ही आती हैं
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है…
बचपन की धुंधली तश्वीरें जुड़ करके
जीवन की आपा-धापी से मुड़ करके
नयनों से चुपचाप उतर कर अन्तस् में
लगता जैसे पास मुझे वह बुलाती है….
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है…
याद हमें है बचपन में जब हम घबराते
बाबू जी थे हमको अच्छी बात सिखाते
खुश होकर मुझको छोटी बहना के संग
देते रुपया एक याद यह भी तड़फाती है ..
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है …
संघर्षों का जीवन था पर रुके नहीं
बाधाओं से घबरा करके झुके नहीं
करते रहे परवरिश तन्मय हो करके
दीदी उनके कर्म-त्याग बतलाती हैं
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है..
मां संग मिलकर हरा किया है उपवन
उऋण न हो सकता घर का कण-कण
बनकर छाया शीत-धूप से हमें बचाया
भावुक हो फिर नयन नीर बह जाती है
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है…
धैर्य, समर्पण, साहस का पाठ पढ़ाया
अंतकाल तक स्वयं उसे निर्द्वद्व निभाया
रहे सहज छल-मल से कोसों दूर सदा
सूनी चौखट मन को बहुत रुलाती है
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है…..
बाबू जी तुम देव तुल्य इंसान रहे
घर के अपने जीवन भर शान रहे
नहीं दूर आशीष तुम्हारा अब भी है
यही एक उम्मीद हृदय सहलाती है
बाबू जी की याद बहुत ही आती है
स्मृतियों की विपुल राशि संग लाती है…
डाॅ. राजेन्द्र सिंह “राही”