ये दिल्ली चुनाव के सीरिज का मेरा तीसरा और आखिरी अंक है और आज हम बात करेंगे काँग्रेस की | काँग्रेस भारत की सबसे पुरानी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी और कभी अजेय मानी जानी पार्टी अभी तक के अपने सबसे बुरे दौड़ से गुजर रही है और उसकी ऐसी स्थिति हो चुकी है कि वो चुनाव के इस समर में भी किसी भी वजह से चर्चा में नहीं है | जहाँ भाजपा अपने स्वर्ण काल से गुज़र रही है काँग्रेस किसी तरह अपने अस्तित्व को बचाने में लगी है | काँग्रेस की ऐसी स्थिति का ज़िम्मेदार कौन है अगर ये प्रश्न उसके दिग्गज नेताओं से पूछे तो वो भी बगलें झाँकने लगते है | 2004 के लोकसभा में जब भाजपा के श्री लालकृष्ण आडवाणी प्राईम मिनिस्टर इन वेटिंग थे तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि काँग्रेस सत्ता में वापसी करेगी पर उसने न केवल वापसी की बल्कि आडवाणी के सपने को हमेंशा के लिए तोड़ दिया | 2009 में भी यही हुआ | पर ये राजनीति का संक्रमण काल था जब धीरे धीरे क्षेत्रीय पार्टियाँ मजबूत हो रही थी और उदय हो रहा था एक सूरज का जो पश्चिम से उग रहा था नाम था नरेन्द्र दामोदरदास मोदी | किसे पता था कि केन्द्रीय राजनीति में पैदा हो रहे शून्य को वो एकदम से पाट देंगे | उनपर गंभीर आरोप थे और उनकी छवि एक हिन्दूवादी नेता की थी | काँग्रेस अभी तक गाँधी नेहरू परिवार की छाया से खुद को अलग नहीं कर पा रही थी | उसकी इस एक परिवार पर निर्भरता उसे दीमक की तरह खोखला किये जा रही थी | और इस बात का भरपूर फायदा मिला भाजपा को | लगभग एक दशक के बाद मोदी के रूप में उसके पास एक ऐसा नेता था जो न केवल एक अच्छा वक्ता बल्कि एक आक्रामक नेता था, जो बातें तो विवेकानंद की करता पर उसमें ओज भगत सिंह का होता | जो अंबेडकर को अपना आदर्श बताता पर जीवन का आचरण पंडित दीन दयाल उपाध्याय जैसा होता | वो कोई और नहीं बल्कि तब के गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी हीं थे | और पूरे देश में उनके विकास का मॉडल सबके सर चढ़ के बोल रहा था | लोगों ने जिन्हें प्रायः भुला दिया था उन सबको उन्होंने फिर से ज़िंदा किया चाहे पटेल हो या नेता जी | इससे पहले सिर्फ गाँधी ही थे जो अभी भी प्रासंगिक थे | और जब उन्होंने सब इतिहास पुरूषों को पुनर्जीवित किया तो उन्होंने भी उनकी सहायता की | वो मुद्दा बने | पटेल की प्रतिमा का निर्माण उसका जीता जागता उदाहरण है | काँग्रेस भाजपा की वो रणनीति कभी समझ हीं नहीं पायी | वो गाँधी -गाँधी रटते रहे और पटेल कब गाँधी से आगे निकल गये उन्हें पता भी नहीं चला | और जो जीवन देगा उसका फायदा भी तो उसी को मिलेगा | मोदी बनिया हैं और व्यपार अच्छे से जानते हैं| इसको ऐसे समझिये कि कोई लेखक जब कोई पात्र गढ़ता है और वह जीवन भर उसे कमा के देता है | स्पाईडरमैन, आइरन मैन ये सब सिर्फ गढ़े हुये पात्र हैं और मोदी जी ने तो ऐतिहासिक पात्र को जीवन दिया | खैर ऐसी अनेक बातें हैं जिनकी मदद से काँग्रेस धीरे धीरे हाशिये पर जाती गयी | दूसरा उसके तुष्टीकरण की राजनीति और मुसलमानों के प्रति विशेष प्रेम का पर्दाफ़ाश हो गया और एकबार फिर मोदी जी ने वही किया जो करने में वो माहिर हैं | हिन्दुओं के मन में एक बात घर कर चुकी थी कि सब पार्टियाँ केवल मुस्लिम वोट बैंक को साधने में लगे हुये हैं | उनमें एक आक्रोश था जो अब तक दबा हुआ था और वो मोदी के रूप में प्रकट हो गई|
राहुल गाँधी की राजनीति के प्रति उदासीनता और काँग्रेस के बाकी नेताओं का अतिविश्वास कांग्रेस को और नीचे धकेलता रहा | सचिन पायलट और ज्योत्यादित्य सिंधिया जैसे उर्जावान और युवा नेता का सदुपयोग पार्टी कभी कर हीं नहीं पाई | पहले दिल्ली मे कम से कम उसके पास शीला दीक्षित जैसी कद्दावर नेत्री थी | पर अब वो भी नहीं है |
अगर बड़े स्केल पर देखें तो मुस्लिम तुष्टिकरण की उसकी नीति हीं उसे ले डूबी | पूरी की पूरी लड़ाई धर्म और राष्ट्रवाद पर आ के टिक गया | और काँग्रेस इन दोनों हीं से लंगड़ी है | उसके धर्मनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण हो गया और राष्ट्रवादी होने का तो सवाल हीं नहीं उठता क्यूँकि देश के विभाजन की ज़िम्मेदार वही बनी, कश्मीर के धारा 370 री जनक वही रही | मोदी जी ने उसके बनाये सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया | अब पार्टी को धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिये राहुल गाँधी मंदिर में गाहे बगाहे दिखते हैं तो प्रियंका गाँधी गंगा में नाव पर सवार दिखती है पर ये नाटक सा और बहुत हीं सतही दिखता है क्यूँकि ऐसे आचरण की उसकी आदत रही नहीं कभी | अब एकदम से वो कैसे सही दिखें | इसका जहाँ तक उनको नुकसान हीं हुआ | ऐसा माना गया की भाजपा का ऐजेंडा कहीं न कहीं सही है कभी सब उसका अनुकरण कर रहे हैं | अब जब लोगों के पास ओरिजिनल हो तो कॉपी को भला कौन पूछेगा | हाँ ये फार्मूला 10-15 साल में काम करेगी जब उन्हें भी इस सब की आदत हो जायेगी | तब तक तो उनके पास कुछ भी नहीं है जिससे वो इन सबसे ऊबर पायें| पर उन्हें ये समझाये कौन ये वैसे हीं है जैसे बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन | राहुल गाँधी की पार्टी में किसी की भी ऐसी हैसियत नहीं है कि वो राहुल की आलोचना करें या सलाह दे | तो सब कुछ गाँधी(राम) भरोसे ही रहने वाली है |
- अभय सिंह