अफगानिस्तान में एक ओर नई सरकार बनी तो यहाँ दूसरी तरफ पुरानी सरकार को गिराने की तैयारी है। ये भारतीय तालिबानियों की बात ही निराली है। इन्हें सबसे ज्यादा खतरा भारत में ही नजर आता है और तंज कसना इन्हें बखूबी भाता है।
थोक के भाव में जैसे कम गुणवत्ता के फल मिल जाते हैं ठीक वैसे ही इस समय अफगानी नजर आते हैं। हाल ये है कि कोई भी देश पनाह दे दे वही रह जाएंगे, भूखे नंगे रहकर भी जी जायेगें लेकिन वापिस अपने देश नहीं जायेगें। और भारत में बैठे जिहादियों के मुंह बंद हैं क्योंकि बोलने के लिए ही शब्द कम हैं।
डर इस समय ज्यादा है कहीं सरकार देश निकाला ना दे दे इसलिए अपनी ही कौम पर हो रहे अत्याचारों को फुसफुसाते हुए सुना रहे हैं, बेचारे खुलकर बोल तक नहीं पा रहे हैं। खुद अपनी ही कौम के जो दुश्मन बन जाते हैं वही खुद को भी मिटाते हैं। हंसी आ जाती है सोचकर कि किसे किससे ज्यादा खतरा है, एक कौम को दूसरी कौम से या अपनी ही कौम से। लेकिन कर भी क्या सकते हैं ऊँचे ऊंचे पेड़ों पर फल बेवजह ही लटकते हैं। अब कोई तोड़कर खा नहीं सकता और खट्टे-कड़वे फलों का अनुमान भी लगा नहीं सकता, ठीक भारत देश के लिए ये अफगानी है, इनकी सोच कब देश के लिए खतरा बन जाएगी ये कोई अनुमान नहीं लगा पायेगा। वैसे भी हम देश में रह रहे भारतीय तालिबानियों को संभाले या नए तालिबनियों को पनाह दे, देश को नया अफगानिस्तान बना दें।
खाली जा रहे विमानों को यहां से भरकर भेजना चाहिए, जिन्हें जिन्हें यहां आजादी नहीं उन्हें भरना चाहिए और अफगानिस्तान में छोड़ देना चाहिए। वरना जिंदगी भर अहसान फरामोशी दिखाएंगे, खायेगें भारत का और तालिबानी गीत गायेगें।
— जयति जैन ” नूतन” —