साबरमती के संत
अब तो रह-रह के राजघाट कसमसाने लगा,मुझको साबरमती के संत तू याद आने लगा। गूंथ कर हार भ्रष्टाचार के गुलाबों का,तेरी तस्वीरों पै बेखौफ डाला जाने लगा। तेरे चित्रों से छपे कागजों के टुकड़ों पर,बड़े बड़ों का भी ईमान बेचा जाने लगा। पहले कातिल बने फिर धनी फिर मसीहा बने,ऐसे जन सेवकों का राजतिलक होने…