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पश्चाताप

मंजू लता (राजस्थान)

आज रामदीन  बहुत ही उदास बैठा था ।आज फिर उसके बेटे रमेश ने लड़ाई की।उसे घर छोड़ने को कह दिया। यह रोज की बात हो गई थी। वह बैठे-बैठे पुरानी यादों में खो गया । जब चार बेटियों के बाद बेटा रमेश हुआ था । दोनों पति पत्नी बहुत ही खुश हुए और पूरे गाँव को दावत दी थी।जब चौथी बेटी लीला हुई थी तो वह बहुत ही रोया था और रात में उसे गाँव के बाहर सड़क किनारे छोड़ आया था पर उसे कोई नहीं ले गया था तो सुबह वह देखने गया कि उस बच्ची को कोई ले गया होगा पर कोई भी नहीं ले गया तो वह  उसे वापस ले आया पर न तो वह लीला क़ा मुँह देखना चाहता और न ही उसे प्यार करता था। बचपन से ही लीला पिता के प्रेम को तरस रही थी पर उसे अपने पिता से बहुत ही लगाव था। जब भी रामदीन को किसी चीज की जरूरत होती तो लीला ही हाजिर होती थी । धीरे धीरे समय बीत रहा था । लीला बड़ी हो गई। रामदीन ने चारों बेटियों की शादी कर दी। उसकी पत्नी भी उसे अकेला छोड़ कर स्वर्ग सिधार गयी। तभी उसकी छोटी पोती ने आवाज दी कि “दादा उठो घर में चलो ।”वह उठ कर घर में चला गया पर उसके मन में विचार चल रहे थे ।

बेटा अपने काम से काम रखता पिता से बोलता भी नहीं था  । ये सब तो चल ही रहा था कि रामदीन को कैंसर हो गया ।तब बेटे ने घर में पिता को  रहने से मना कर दिया ।वृद्धाश्रम भेजने की तैयारी करने लगा। लीला को पता चलते ही दौड़ी- दौड़ी पिता के पास आई और ऐसी परिस्थिति में लीला अपने पिता को अपने घर ले गई। लीला और उसके पति ने बीमार पिता की  बहुत ही सेवा की। समय-समय पर अस्पताल ले जाना और दवाई देना लीला बहुत ही अच्छे से जिम्मेदारी निभा रही थी ।

लीला की सेवा से रामदीन की तबियत में काफी सुधार हो गया।लीला और उसके पति द्वारा इतनी सेवा करते देख मन ही मन बहुत ही पश्चाताप कर रहा था कि इस बेटी को ही मैंने छोड़ दिया, पूरे जीवन भर उसे पिता के प्रेम से वंचित रखा उसी ने आज नया जीवन दिया और अपने बेटी दामाद से माफी माँगी और खुब आशीर्वाद दिया ।

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