कविता मल्होत्रा (स्थायी स्तंभकार, संरक्षक)
प्रेम के पल्लवों से गुलज़ार हो जाए हर शाख़
नवचेतना हर रूह में उतरे तो घटित हो बैसाख़
वक्त की रफ़्तार और प्रकृति के प्रहार धीमे धीमे अपने विभिन्न रंगों से समूचे विश्व को रंग रहे हैं।वैश्विक स्वास्थ्य केवल दैहिक उपकरणों की देख-भाल का परिमाण नहीं है, बल्कि वैश्विक मानसिकता का परिमार्जन है।
एक तरफ़ जलियाँवाला बाग़ की त्रासदी हर हिंदुस्तानी नागरिक के ज़हन में आज भी सुलग रही है।लेकिन परस्पर शांति स्थापना के प्रयास का ही नतीजा है कि आज अनेक भारतीय छात्र अपनी उच्च शिक्षा के लिए अपने परिवारों के साथ यूरोपीय देशों में बसे हुए हैं।दूसरी तरफ़ हर वर्ष विदेशी पर्यटकों के ज़रिए भारत के खाते में जमा होने वाली पूँजी और विदेशी व्यापारिक प्रतिष्ठानों की भारतीय बाज़ारों पर निर्भरता भारतीय कोष को समृद्ध कर रही है।
इस सबके बावजूद आजकल हर कोई खुद को स्वतंत्र इकाई मानते हुए अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ने में इस कदर मशगूल हो चुका है कि भारतीय ही नहीं बल्कि वैश्विक एकता को स्वार्थों की दीमक चट करने लगी है, और मानव अपने जीवन का उद्देश्य ही भूल बैठा है।
आज रूस और यूक्रेन युद्ध के परिणाम किसी से छिपे नहीं हैं।कितने ही छात्रों की शिक्षा अधर में लटक गई है।महज़ ज़मीन के चंद टुकड़ों पर अपना स्वामित्व पाने की ख़ातिर सेनानी अपनी शहादत दर्ज़ करवा चुके हैं। लेकिन परिणाम क्या होगा?
हर वर्ष हर माह कोई न कोई महत्वपूर्ण दिवस केवल जश्नों के माध्यम से मना कर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को केवल रोबोटिक ज्ञान की धरोहर सौंप कर जाएँगे।
अगर वास्तविक वैशाख का आनंद लेना है तो हमें नई नस्ल को परस्पर युद्ध की नहीं बल्कि वैश्विक प्रेम की फसल उगाने का हुनर सिखाना होगा, ताकि भारतीय संस्कृति अपनी गरिमामयी ज्ञान गंगा के छींटों से ज़िंदा लाशों की मृत मानसिकता को पुनर्जीवित कर सके।
आज अपनी संस्कृति की धरोहर किसके हाथों में सौंपी जाए, ये सबसे महत्वपूर्ण सवाल है।रोबोटिक ज्ञान भले ही अंतरिक्ष की सैर करवाने में कामयाब हो जाए लेकिन सहस्त्र कमल सरोवरों की यात्रा के लिए तो आज भी ज्ञात से मुक्ति का ही इल्म सीखने की ज़रूरत है। इतिहास गवाह है कि जो ज्ञानी है वही अहम का ध्यानी है। जो अहँकारी है वो निराकार का दर्शनभिलाषी तो हो सकता है मगर दर्शन का साक्षी नहीं हो सकता।प्रतिमाओं में खँडित करके अखंडित ज्योति पुँज के निर्माण का प्रयास निरर्थक है।वर्ल्ड हैल्थ डे के नाम पर चंद स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन कभी भी परस्पर विरोधी मानसिकताओं को नहीं बदल सकता।अगर हमें वैश्विक स्तर पर स्वच्छ और स्वस्थ मानसिकता की फसल उगानी है तो सर्वप्रथम अपनी मानसिकता का रूपाँतरण करना लाज़मी है।निःस्वार्थ प्रेम की सल्तनत तो अविनाशी है, जिसकी रक्षा और समृद्धि के लिए प्रेम के अलावा किसी भी हथियार या पूँजी की ज़रूरत नहीं है।तो क्यूँ न अपनी संस्कृति की धरोहर प्रेम के ही हाथों में सौंपी जाए,जिससे समूचा विश्व युद्ध के नहीं अपितु एकता के बिगुल बजाए।इस बार नवरात्रि पर नई सोच से प्रेम की ज्योति जला कर माँ की आराधना करें और प्रेम के प्रसाद का वितरण करें।हर उत्सव का आनंद लें और परमानंद का प्रसाद पाएँ।
वैश्विक बँधुत्व के बीज बोएँ
परस्पर प्रेम की खाद मिलाएँ
दो गज ज़मीं सबकी ज़रूरत
राख के ढेर पर बैठे न इतराएँ
चाँद पर मकानों की हसरतें
बुनियाद में एकता भर पाएँ
काग़ज़ी ज्ञान नैया डुबो न दे
रूह को घना वट वृक्ष बनाएँ
हर देश में अपने नीड़ असंभव
हर दिल में प्रेमदीप जला जाएँ
उजाला स्नेह का महिमा मंडित
वैमनस्यता का अंधेरा दूर भगाएँ
हृदय की धड़कनें रहे अखंडित
वैश्विक स्तर पर बैसाख़ मनाएँ
नवरात्रि पर रोशन हों चेतनाएँ
प्रेम पूजें प्रेम बाँटें प्रेम रोशनाएँ