होली में सूचना आइल कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बंग्लादेश में होली खेलने गए थे । वहा शेख हसीना से कह रहे थे कि उन्होंने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए सत्याग्रह किया था , बुरा ना मानो होली है । लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं है क्युकी आगे अप्रैल फूल भी था । कोई माने ना माने, हम मानते हैं, क्यो नहीं माना जा सकता कि मोदीजी सत्याग्रह कर सकते हैं । ये देखिए फिर हंसी गूंज रही है टी एम सी पार्टी वालों की , सत्याग्रह को लेकर, ये नरेटिव बनाया जा रहा है कि मोदीजी असत्याग्रह के लिए पहचाने जाते हैं पूरा मामला पॉलिटिकल मार्केटिंग के नैरेटिव का है । मोदी जी के बैकग्राउंड की तलाश अब तक चल रही है तो उधर, बड़नगर में प्राचीन अवशेषों की खुदाई चल रही है कि कहीं यहां कोई रेलवे स्टेशन तो नहीं था और था तो क्या वहां चाय की दुकान तो नहीं थी । तेईस हताश कांग्रेसी हिमालय की कंदराओं में माननीय का ध्यानस्थल तलाश रहे हैं ताकि पूरा एक बौद्ध सर्किट की तरह मोदी सर्किट बनाया जा सके । कुछ मोदीजी की एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री ढूंढने के चक्कर में स्मृतिजी की विस्मृत डिग्री भी तलाश रहे हैं ।ऐसे नेरेटिव पर ही कोई व्यक्ति महान बन जाता है तो उसके प्रति अगाध श्रद्धा में उन सभी स्थलों को तीर्थ मान लिया जाता हैं जहां जहां उनके चरण कमलों ने इस धरा को पवित्र किया होगा । अब तो लोगों को संदेह शुरू हो गया है कि कहीं अंडमान की सेलुलर जेल मे भी तो अपने जननायक अवस्थित नहीं थे । तो इस भरमज्ञान के लिए हम पहुंचे वाराणसी । वहां पहुंच हुए एक अख्खड़ बनारसी ने मुंह में पान दबाते हुए बताया कि गुरु अईसा है ना कि मोदी जी पुरनका वाला खेलाड़ी हौउ अन , इहां बनारस में दो ही चीज का चर्चा सबसे अधिक होला ऊ हौ बनारसी साड़ और मोदी जी का पंद्रह लाख । देह वहीं हिमालय की कंदरा में छोड़ कर आयल हौं । इहा त लोग पुराना देह छोड़ और फिर यहीं के मृत शरीर में परकाया प्रवेश कर मणकर्णिका घाटे पर विश्राम करते है , इसीलिए तो हर रैली में यहां के नेता कहते हैं कि मैं खुद नहीं आया हूं, मुझे मां गंगा ने बुलाया है ,और सुन लेओ कि मोदीजी कभी मरने-पैदा लेने वाली आत्मा नहीं है, वो तो अब कण-कण में विद्यमान हैं, अब वो अनगिनत असंख्य व्यक्तियों को दिलोदिमाग में प्रवेश कर गए हैं । बनारसियए ससुरे भी अइसन बकैती के हमेसा से कायल रहे हैं सो एक नहीं दुई-दुई बार जिता दिए भगवन के , अब आप एक नई चरस ले कर चले आए हैं कि वो बांग्लादेश की लड़ाई लड़े थे, तो इसमें कौन बड़ी बात है बे, जो परकाया प्रवेश कर सकता है तो कुछ भी कर सकता है ।
मोदी है तो मुमकिन है ये नारा अब होली पर बंगाल में भी सुनाई दे रहा , नहीं सुनै हो, बंगाल न्यूज़ चैनल देखते ही नहीं हो तो तुम्हें पता क्या खाक चलेगा कि मोदीजी कब सोए कब जागे, जब पूरा देश लुट जाएगा, जब हावड़ा बिका जाएगा तो सरकार अडनिये को सौंप कर झोली उठा कर वो चल देंगे हिमालय तब जागिएगा । उनको क्या मोह है , ममता दीदी तो होली मनाएंगी नहीं । चप्पल और गोड़ दुनौ टूटल बा ना आगे नाथ, ना पीछे पगहा, लेकिन जब बंगाल हारेंगी तो बनारस पर स्टॉपेज ज़रूर लेंगी ये देखने के लिए कि इहा का जादू बा , पप्पू से कचौड़ी की दुकान पर मिल लीजिएगा, सरिया लीजिएगा जितनी भी शंकाएं उलूलजुलूल की आपके मनमस्तिष्क में घूम रही हैं, अरे कहीं तर्क से दुनिया चली है, भक्ति से बड़ा कौनों तर्क है जी ..क्या, समझते हो, कितना हो गरिया लीजिए, लेकिन आएगा तो मोदी ही ये कहने वालो को जरूर ढूंढना है । इसके सामने टिक पा रहे हों दो आम चुनाव से, आगे भी क्या खाक जीतोगे. आओ बइठो, भांग घोंटी जा रही है, ठंडाई औटाई जा रही है, और मोदीजी वाह, मोदी जी वाह, मोदीजी सारारारारारारारारारा… जोगीरा गाया जाए. मरदे ये जो पैट्रोल पूंछ में लगा कर घूमते हो ना कि बडा मंहगा हो गया है- दइया रे दइया, ये ठंडाई सारा दाह कम कर देगा. ये पश्च भाग के ताप को कम करो और पश्चाताप बंद करो… ये लीलाधारी का ही ग्यारहवां-बारहवां अवतार हैं मोदीजी….मंदिर ना बनवा दिए तो कहना बनारस में… ये सार प्रशांत किसोरै नहीं मिल रहा है, बंगाल से लौटेगा तो मिलेगा. क्या अदभुत लिखता है चुनाव के लिए मोदी पुराण ही रच डाला ससुर, ऐसा रचा कि अब मोदीजी अपने ही किरदार के गुलाम हो गए, औऱ ससुरे तुमको मोदी पुराण का सबूत चाहिए, गड़हा में धों –पोंछ कर आओ फिर बताते हैं कि सबूत क्या होता है हम लोग कौनूं चीज़ हवा में नहीं पैदा करते ।. भृगु संहिता में सारे प्रमाण हैं । 1971 में अटल बिहारी वाजपेयी जी बांग्लादेश को मान्यता दिलाने के लिए सत्याग्रह किए थे कि नहीं, अरे तो एकै ना बात है बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई और मान्यता दिलाने का सत्याग्रह में कौन फरक है जी , इंदिराजी दो फाड़ कर दी हाथ डाल कर, पाकिस्तान इस तरफ-बांग्लादेश उस तरफ बीच में अमेरिका सा सातंवां बेड़ा..देवी का विकराल रूप तब अटलजी देखे थे औऱ कहे थे साक्षात दुर्गा हां ये तो, अटलजी को क्या पता था कि उनके सत्याग्रहियों में कोई ग्राह्य से गजेंद्र को मोक्ष दिलाने वाला भी बैठा है. वो तो इंदिराजी को दुर्गाजी बताने में मस्त रह गए। हमें मालूम पड़ गया था कि दिल्ली से चल कर आप आ रहे हैं सो पूरी भृगु संहिता बांच कर हम पहले ही बईठ गए हैं, विजया पान कीजिए और ठंडाई खींचिए ।
पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर