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ग़ज़ल

इस नये साल पर दें तुम्हें क्या बधाइयाँ।

हर सिम्त हैं चीखें-पुकार, ग़म- रुलाइयाँ।

हम जायें किधर इधर कुंआ, उधर खाइयाँ

गुमराह हो गयी हैं हमारी अगुआइयाँ।

काबिज़ हैं ओहदों पर तंग़ज़हन ताक़तें,

हथिया रहीं सम्मान सभी अब मक्कारियाँ।

ईमानदारियों की पूछ- परख है कहाँ,

मेहनत को भी हासिल नहीं हैं कामयाबियां।

माँ,  बहन, बेटियों की लुट रही हैं अस्मतें

देता निज़ाम न्याय माँगने पर लाठियाँ।

टूटे नहीं थे जिसके अभी दाँत दूध के,

उसके ज़हन- ओ- ज़िस्म पर लिख दीं बदकारियाँ।

मर्दों के पाप  ढोएंगी कब तक यूँ औरतें,

क्यों नाम पर औरत के ही ‘महरूम’ गालियां।

                    देवेन्द्र पाठक ‘महरूम’

                 1315,साईपुरम कॉलोनी,

                    रोशननगर, पोस्ट -कटनी,              483501, म.प्र.

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