अगस्त माह की बात निराली
चहुं ओर छा जाती हरियाली
लेकर आता ये रक्षाबंधन त्योहार
हर्षित करता बहन-बेटी का प्यार
घर की रौनक जब घर में आती
आंगन कली- कली खिल जाती
किलकारी से गुंजित होता आंगन
जैसे उल्लसित हो उठे धरा गगन
अगुवाई में बाजार हो जाते गुलजार
जैसे सालों से हो बहनों का इंतजार
घेवर फैनी संग पकवानों की मिठास
पर्वोत्सव की खुशी बना देती है खास
अगस्त है बलिदानी गाथा का पर्याय
तो ‘भारत छोडो’ है आजादी अध्याय
15 अगस्त को होता जब ध्वज वंदन
आजादी माथे चढता रोली अक्षत चंदन
जिनकी कुर्बानी से हमने आजादी पाई
दास्तानें उनकी सुन आंखें भर-भर आई
कैसे भूलें जन्माष्टमी और ईदुज्जुहा
माहे अगस्त अपने में समेटे हर दुआ
अटल जन्म हो या हो राजीव जयंती
ये बलिदानी माह है रत्नों की गिनती
ध्यानचंद स्मृति हो या पारसी नव वर्ष
अगस्त का संदेश है कुर्बानी से उत्कर्ष
* डाॅ देवेन्द्र जोशी