तकदीर की लकीरें”
कौन आज आया तकदीर का,
दरवाजा खटखटाने बता दे मुझे।
कैसी है ये दस्तक जिंदगी में,
कोई तो बता दे मुझे।
तकदीर की लकीरें अजीब है,
कौन पढ़ें आज इनको यहाँ।
लकीरों में उलझी तक़दीर मेरी,
कोई तो बता दे मुझे।
कौन है जो मेरी तकदीर के,
दरवाजे पर आज है खड़ा।
किसने खटखटायी तक़दीर,
कोई तो बता दे मुझे।
कौन है लकीरों में,
तकदीर में किसकी लकीर है।
बड़ी उलझन में है मन मेरा,
कोई तो बता दे मुझे।
*कृष्णा शर्मा
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*भटकती आत्मा*
शब्दों में दर्द भर के,
लिखती हूँ मैं दास्ताँ।
दर्द ना जाने कोई,
मेरी भटकती है आत्मा।
कितनी और कब तक,
दर्द भरी लिखूं मैं दास्ताँ।
दास्ताँ न समझे कोई,
मेरी भटकती है आत्मा।
एक पल एक घड़ी,
दर्द को चैन नही।
दर्द से बेचैन होके,
मेरी भटकती है आत्मा।
जहाँ देखूँ सेहरा दिखे,
दर्द भरी दास्ताँ लिए।
जिंदगी नजर आती नही,
मेरी भटकती है आत्मा।
*कृष्णा शर्मा*
फरीदाबाद (हरियाणा) में रहने वाली कृष्णा शर्मा जी के लेखन की विधा काव्य है
अनेक साझा संकलनों तथा राष्ट्रीय पत्र=पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं
संपर्क : 99711 86117