चुपके चुपके बिना पदचाप
पैर पसार रही अजब बीमारी
इसको नहीं किसी का भी डर
क़ाबू कर ली है दुनिया सारी
जीव जंतु तो घूम रहे खुले में
मानव क़ैद हुआ घर के भीतर
अब इनको भी समझ में आया
आज़ादी और पिंजरे में अंतर
मोटर ट्रक भी न धुंआ उड़ाते
ख़त्म ही हो गया ज्यों प्रदूषण
अकारथ जो न घर से निकलें
खाकर मार नही होंगे घायल
बाहर का करना हो नज़ारा
घरों मे दरवाज़े और *खिड़की*
देखो तो कितनी समझदार ये
झरोखे से झाँके प्यारी लड़की
घर हो कच्चा चाहे हो पक्का
रहोगे अगर तुम घर के अंदर
तब व्याधि से मुक्ति पाकर के
साबित करो ख़ुद को सिकंदर
-“नीलोफ़र