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गर्मी के दोहे

सूरज आतिश बन गया,तपे नगर,हर गाँव।

जीव सभी अकुला उठे,ढूँढ रह सब छाँव ।।

सूरज का आक्रोश है,बिलख रहे तालाब ।

कुंओं,नदी ने भी ‘शरद’,खो दी अपनी आब ।।

कर्फू सड़कों पर लगा,आतंकित हर एक ।

सूरज के तो आजकल,नहीं इरादे नेक ।।

कूलर,पंखे हँस रहे,ए.सी.का है मान ।

ठंडे ने इस पल “शरद’,पाई नूतन शान ।।

कोल्ड पेय भाने लगे,कुल्फी पर है गौर ।

शीतल जल की माँँग है,ठंडे का है दौर ।।

धूप लिए है दुश्मनी,बनी हुई है आग ।

प्राण बचाना चाहते, तो लो बचकर भाग ।।

कम्बल अब बेकार हैं,बिरथा ऊनी वस्त्र ।

किरणें हमले कर रहीं,बनकर तीखे शस्त्र ।।

पानी जैसा बह रहा,तन से अविरल स्वेद ।

इस मौसम में हो रहा,हर इक जन को खेद ।।

गर्मी का आतंक है,सूख गया है नीर।

केवल अब तो शेष है,देखो भाई पीर।।

              -प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे                  

       शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय

        मंडला(म.प्र.)-481661

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