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जब कभी

जब कभी महफिल भी रुलाने लगे।

तन्हा-तन्हा पल जब सताने लगे।।

हमको आवाज देना मगर दिल से तुम।

चाहे इसके लिए अब जमाने लगे।।

रिश्ते हर रोज बनते हैं मिटते यहां।

दिल लगाना यहां बस फसाने लगे।।

ग़मों से अगर बात हो अपनी कभी।

इन्तहां में भी हम मुस्कुराने लगे।।

रंग भरते हैं ख्वाबों में हर रोज ही।

अपने ख़्वाबों खुद ही सजाने लगे।।

आईने में बहुत, “नमिता” देखा तुझे।

झूठ से अपने मन को बहलाने लगे।।

नमिता सिंह जाट

धनारे कॉलोनी

नरसिंहपुर

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