जीवन के वृक्ष को जीवन्त रखना है,
प्रेम के पानी से उसे सींचते रहना है।
उसको सुखाता है नकारात्मक सोच,
शुभ सोच से सदा हराभरा रखना है।
अहंकार की ऊष्मा विष के समान है,
जो जीवन को विषाक्त कर देता है।
जो सीख लिया है दंभ को दुत्कारना,
मजेदार जीवन का वह मजा लेता है।
जीवन कहता है देने की आदत डाल,
देने के बाद ही किसी को मिलता है।
निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति से ही,
प्रभु से भक्त का साक्षात्कार होता है।
सदैव शुद्ध मन से लेनदेन करने पर,
जीवन में सुख,समृद्धि,शांतिआती है।
वसुधैव कुटुम्बकम का भाव आने से,
सबों की जिंदगी मुस्कुराने लगती है।
डॉक्टर सुधीर सिंह , शेखपुरा , बिहार