जलसे-जुलूस अब ख़त्म हुए, दंगो से पीछा छूटा था,
पर कोरोना ने आ घेरा, जिससे ये कुटुंब अछूता था|
बर्ड फ़्लू-कभी स्वाइन, कभी गोरो ने आ घेरा था,
अब कोरोना की बारी आई,जिसका चीन बसेरा था|
भारत के बाशिंदो पर, विपदा के बादल आन पड़े,
श्रमिको के टूटे छप्पर में,सूने राशन के डिब्बे जान पड़े|
महामारी की इस रोकथाम में, व्यापारों पर धूल पड़े,
खुशियों के गुलशन में देखों मुरझाए से फूल पड़े।
जब भी विपदा आयी वतन पर खाकी वाले पूरी शान लड़े,
फिर भी निर्दयी कहें पुलिस को जो चौराहो पर सीना तान खड़े|
तब देख इस महामारी को, कई युवा नेता आन पड़े,
स्वाभिमान-खुद्दारी,के भी निर्मल अश्रु आन पड़े।
महामारी की वजह को कुछ तो सरकारों को कोस पड़े,
सियासत के इस दंगल में, जब तस्वीरों की धौस पड़े|
इतिहास गवाह है विश्व समूचे पर जब-जब विपदा आई है,
भारत ने वसुधैव कुटुंबकम् कि नीति अपनाई है।
चढ़े लालिमा फिर सूरज की, आसमां भगवामय हो जाएगा,
जब गाए भारतवर्ष तराना तो खुशियों का संगम अमृतमय जाएगा,
घर में हम हैं-घर में तुम हो,जैसे लाॅकडाउन ये बीतेगा,
जीतेंगे महामारी से हम, देश हमारा जीतेगा,
शिवम मिश्रा भोपाल