कदम कदम पर साथ मिला औ ,
काँधे पर चढ़ना , इठलाना !
दूर दूर तक रखी निगाहें ,
पलकों में सब सिमटा आना !
दूर आपसे रहकर जाना ,
जीना भी सचमुच बवाल है !!
खेल कूद या खाना पीना ,
कैसे मस्ती में है जीना !
हार जीत कैसे पच जाये ,
कैसे उधड़े को है सीना !
समाधान सब साध रखे हैं ,
मन में शेष नहीं सवाल हैं !!
मिली कसौटी राह दिखाई ,
काँटों पर चलना सिखलाया !
कैसे क़ैद खुशी के पल हों ,
रहा दुखी मन तब बहलाया !
शमसीरें तानी अपनों ने ,
मेरे खातिर बने ढाल हैं !!
माँ ने जाना चोट मर्म का ,
आप प्रेरणा देते आये !
सपने माँ ने दिखलाये तो ,
आप रंग जो भरते आये !
उम्र ख्याल खुद का रखने की ,
हरपल मेरा ही खयाल है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )