अमरैया की छांव तले
नन्हे नन्हे ,पांव चले ।
हरी-भरी, डाली में झूमे
बचपन जिसकी ,गोद पले ।
मीठे फल और ठंडी छांव
बरगद वाला, मेरा गांव ।
लट देखो ,धरती को चूमे
मस्ती में वो सर- सर झूमे ।
ज्यो मतवाली नाव चले
अमरैया की छांव तले।
नन्हे नन्हे पांव चले।
फल हैं जैसे, खेल खिलौने
मुट्ठी में, बांधे है,छौने।
बजती जब , पत्तों की ताली
कूके तब, कोयल मतवाली।
मस्ती में है,नन्हा अर्जुन
और गुलाबो ,दांव चले
अमरैया की छांव तले
नन्हे नन्हे पांव चले ।
टहनी ने ,खूब दुलारा है
सब को, सदा पुकारा है ।
पिता सरीखे, प्यार दिया
जीवन सदा, संवारा है।
सबके आंसू, पीकर इसने
शीतलता से घाव भरे ।
अमरिया की छांव तले
नन्हे नन्हे पांव चले ।
हरी-भरी डाली में झूमें
बचपन जिसकी गोद पले।।
——‘
सतीश उपाध्याय
(वरिष्ठ साहित्यकार )
(मनेंद्रगढ़ , कोरिया
छत्तीसगढ़)