जिस परमपिता ने जीवन का उपहार दिया मत उसे सँहार दो
प्यासी है हर आत्मा ग़र हो सके तो सबको निस्वार्थ प्यार दो
आज हर तरफ हिंसा और आक्रोश का बोलबाला है, जिसने समूची मानवता को अपनी गिरफ़्त में लेकर चौपट कर दिया है। कहीं मज़हब के नाम पर बारूदी हमले हो रहे हैं, तो कहीं स्वार्थ सिद्धि के लिए जन मानस का शोषण।
तुझमें भी वो मुझमें भी
वो तेरा भी वो मेरा भी
रँग लहू का एक और
समान साँझ सवेरा भी
फिर क्यूँ हम दुश्मन हैं
हर आँख़ की नमी सागर
हर रूह की तृषा बराबर
न हो मैली अपनी चादर
छलकाते प्रीत की गागर
पहचान हम वो हमदम हैं
हम सब एक ही परमपिता की सँतान हैं, ईश्वर एक है, जो जन-जन के हृदय में विद्यमान है।उस परम पिता की उपासना का एकमात्र तरीक़ा है – मानवता की सेवा जो कि ईश्वर की सच्ची सेवा है।इस दिव्य सँदेश के वाहक, अँधविश्वास और आडँबरों के कट्टर विरोधी, गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर, उनकी शिक्षाओं की अमूल्य आध्यात्मिक निधि का, जनमानस में वितरण, समूची मानव जाति का दायित्व है।
यदि ईश्वर स्वरूप गुरुनानक देव जी, अपनी आध्यात्मिक सँपदा जनमानस में वितरित कर सकते थे, तो क्या उनके सच्चे शिष्य होने के नाते हम अपनी एकता और निस्वार्थता की कमाई उन ज़रूरतमँदों में नहीं बाँट सकते जो भेदभाव के अलगाववादी रास्तों पर चलकर मानवता को कलँकित करने पर उतारू हैं!
ज़रा सोचिए कि गुरू की सँगत को समानता के रँग में रँगने और जातपात के भेद भाव से दूर करने के लिए जब एक पँक्ति में बैठा कर लँगर परोसा जाता है तब किसी मज़हब की दीवार कहाँ आड़े आती है!
प्रभु ने सभी को निस्वार्थता का समान ख़ज़ाना देकर गढ़ा है। वो कभी किसी को कम और ज्यादा नहीं देता। उसके बादल सब पर बराबर बरसते हैं। उसका सूरज सबके लिए उगता है। उसकी आंखों में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है।न उसने
कृष्ण को कुछ ज्यादा दिया, न ही बुद्ध को कुछ ज्यादा दिया, जिस से उनकी आत्मा के दीप रोशन हुए। जो न केवल खुद जगमगाए, बल्कि उनकी जगमगाहट से समूची मानव जाति जागृत हुई, और दीयों से दीए जलते चले गए। ज्योति से ज्योति जलती चली गई।जब प्रभु की तरफ से प्रत्येक को बराबर मिला है। रत्तीभर भेद नहीं। फिर हम अंधेरे में क्यों हैं? फिर कोई बुद्ध रोशन हो जाता है और हम बुद्धू के बुद्धू क्यों रह जाते हैं?
ये प्रश्न भले ही कठिन लगे लेकिन इसका उत्तर बहुत ही सरल है।
सबमें रब बसता,कभी दिल न कोई तोड़ें
काम क्रोध लोभ मोह और अहँकार छोड़ें
अपने रास्ते निस्वार्थ प्रेम की तरफ मोड़ें
स्वार्थ त्याग हर दिल से दिल को जोड़ें
केवल गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकने से कभी किसी की अरदास कुबूल नहीं होती।केवल पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने से दिलों की मैल साफ़ नहीं होती।इसलिए यदि वास्तव में प्रकाश उत्सव का जश्न मनाना है तो गुरुनानक देव जी की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए, उनका शिष्यत्व ग्रहण करना होगा और उनके दिखाए सच्चे सुच्चे रास्तों पर चलकर मानवता की सेवा, निस्वार्थ प्रेम से करनी होगी, तभी तो मानव जाति एकजुट होकर एक ज्योति में समाने के काबिल बनेगी।
आपसी न कोई फूट हो
जनमानस एक जुट हो
बस इतनी हिदायत है
रहीम भी वो राम भी वो
मीरा और श्याम भी वो
सबमें वो,यही इबादत है