असुरों ने सर्वदा की देवों से लड़ाई
एकता समुद्र मंथन ने दोनों में कराई।
देवी लक्ष्मी विलुप्त हुई क्षीर सागर में
समुद्र मंथन किया गया था लक्ष्मी पाने।
सागर मंथन से उत्पन्न हुआ जो विष
दृष्टि बचाने को इसे पी गए थे शिव।
महादेव का गला नीला हो गया
शिव ने विष गले में ही रोक लिया।
संकट हुआ था देवों पर भारी
विष चढ़ा मस्तिष्क देव लोक दुखारी।
भोलेनाथ हुए अचेत कैसी घड़ी
शिव को होश में लाना चुनौती बड़ी।
आदिशक्ति माता तब थीं प्रकट हुईं
जड़ी बूटियां और जल की बात कही।
गर्मी बहुत थी शिवजी के सिर पर
तब भांग धतूरा था रखा सिर पर।
बार-बार जल चढ़ाया जाने लगा
शिव को होश में लाया जाने लगा।
भगवान शिव का सिंगार बना धतूरा
चाहे जहरीला समझा जाए धतूरा।
जिसे तिरस्कृत करता है यह समाज
उसे अपना लेते हैं शिव भगवान।
शिव पर धतूरा चढ़ाते जाएं
मन से अपने कड़वाहट मिटाएं।
ले आये मानव जब मन में मिठास
प्रसन्न हो जाते हैं तब शिव भगवान।
सभी देवों से अलग हैँ नीलकंठ
गल सर्प भष्म विषपान गंजलिपुष्प।
कोई स्वार्थ न था मन में शिव के
मानव न रखे स्वार्थ अपने मन में।
शिव ने वास किया था कैलाश पर
शिव ने वास किया था श्मशान पर।
अच्छी सीख मिली है समुद्र मंथन से
अमृत मिलता है केवल संघर्ष करके।
नशीली वस्तुएं मानव जब ग्रहण करे
नीलकंठ सदैव उनसे रुष्ट रहें।
बेलपत्र दुग्ध जल चंदन चढ़े दही
भांग धतूरा बिन नहीं पूजा सही।
पूनम पाठक बदायूँ