Latest Updates

मगर….

खफा हो गए मुझसे

मेरे ही शब्द

बहुत सोचा मगर

कुछ लिख पाया नहीं।

एक नगमा था

जो गाती थी कभी मैं

आज बहुत सोचा मगर

याद कुछ आया नहीं।

ये जो बदली थी न

ये कल भी थी

बरसी बहुत टूटकर मगर

मेरे मन को भिगाया नहीं।

ये जो राह गुजर रही है

आना जाना लगा रहता है

लौट आने को कहा था मगर

अबतक वह आया नहीं।

मेरा इश्क़ मुकम्मल हो जाता

लेकिन हो ना सका

ना वो कुछ बोल सके

और मैंने भी जताया नहीं।

— जयति जैन “नूतन” —

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *