बस बहुत हो चुका हलवा- पूरी
कन्या पूजन भी बहुत हुआ
अब नहीं सुरक्षित कहीं बेटियां
सब कर रहे कर- बद्ध प्रार्थना
नवरात्रों में भोग लगाने
अब घर- घर मत आओ माँ
कितनी निर्भया और बलि चढ़ेंगी ?
आज हमें बतलाओ माँ
मैया सीता तो निष्कलंक थी
क्यूंकि लंका में रावण था
जनक नंदिनी निष्कलंक थी
फिर भी लंका का नाश हुआ
त्रेता में श्री राम चंद्र ने
दुष्टों का संहार किया
द्वापर में नटवर नागर ने
निशाचरों पर वार किया
द्रौपदी का शील बचाकर
केशव अंतर्ध्यान हो गए
नर, पिशाच बन इस धरती पर
बेटियों पर कहर ढा रहे
अपने ही घर में नहीं सुरक्षित
बेटी होना अपराध हुआ
अब कुछ तो आस बंधाओ माँ
कलयुग, भीषण घनघोर हुआ
अब काली रूप धर आओ माँ
सन सत्तावन अमर हुआ
तलवार मनु की चमकी थी
फूलन भी यूँ अमर हो गयी
बन्दूक किसी पर गरजी थी
और न थामें शस्त्र बेटियां
फिर से पाप मिटाओ माँ
रौद्र रूप धर चंडी का
अब तो अस्त्र उठाओ माँ
वो वैद्य आज शर्मसार हो रहा
जिसने बरसों पहले बेची थीं
पुड़िया बेटे होने की
दूध लजाया दुष्टों ने माँ का
नहीं चाहिए आशीष-दुआएं
दूधो नहाओ ,पूतो फलो की
पुत्री जनम पर सबका
अब तो मन हर्षाओ माँ
आज रुदन करें जग वासी
अश्रु जल की आयी सुनामी
कहने को तुम नौ दुर्गा हो
चंडी ,काली, वैष्णो ,अंबे
करके सिंह सवारी अब तो
किसी रूप में आओ माँ
शीश नवाकर करें वंदना
सबको दरस दिखाओ माँ
सदियाँ हो गयीं सुनते सुनते
बाट जोहते महा प्रलय की
कलयुग अब घनघोर हो गया
बेटियों की चिताओं पर खूब
सिक रही सियासी रोटियां
दुष्ट दमन कर जाओ माँ
टूट गया अब बाँध सबर का
अब महाप्रलय मचाओ माँ
अब महाप्रलय मचाओ माँ
– नीता गुप्ता
(द्वारका ) नई दिल्ली