इस दुनिया में मासूमियत से जब हम-
मशरूफियत की और बढ़ते हैं
लगता है हर रिश्ते के मायने बदल जाते हैं
पहले ज़रा सी चोट लगने पर भी रोते थे
अब दिल पे ज़ख्म खा कर भी मुस्कुराते हैं
यारो संग उठना बैठना और खाना पीना ,
जश्न में हंसना नाचना और गाना बजाना
अब उन यादों के सहारे ज़िंदगी बिताते हैं,
उम्र के साथ साथ बड़ती जिम्मेवारियां
कुछ ऐसे दामन थाम लेती हैं —
ख़ुशी कि राह पर चल नहीं पाते हैं
गम जकड लेते हैं अपने बाहुपाश में
हम चाह कर भी आगे बड़ नहीं पाते हैं
काश वह बचपन की मासूमियत फिर लौट आये
और हम फिर से ज़िंदगी ज़ीने लग जाएँ
….जय प्रकाश भाटिया