धागा यद्यपि सूत का,पर दृढ़ औ’ मजबूत ।
बहिन-सहोदर नेह का,बन जाता जो दूत ।।
पर्वों का यह पर्व है,जिसमें रक्षा,नेह ।
अंतर्मन उल्लास में,होती पुलकित देह ।।
धागा बस इक माध्यम,पलता है विश्वास ।
जिसमें रहती निष्कपट,मीठी-सी इक आस ।।
बचपन की यादें लिये,बिखरे मंगल गान ।
सम्बंधों में है सजा,संस्कार का मान ।।
रिश्ते वो लगते मधुर,जिनमें हो अनुराग ।
रच देते अमरत्व को,ऐसे मधुरिम राग ।।
आध्यात्ममय पर्व हर,देता पावन भाव ।
नीति,सत्य औ’ न्याय का,फिर ना कभीअभाव ।।
भाई हरदम है खड़ा,करने को बलिदान ।
बहन रहे उद्यत सदा,कायम करने मान ।।
राखी तो उत्साह है,राखी है अरमान ।
राखी की शुचिता सदा,पाती है यशगान ।।
तब राखी अनमोल है,जब रक्षित हो आन ।
राखी आविष्कार है,राखी अनुसंधान ।।
“नीलम” को राखी लगे,सचमुच नवल उमंग ।
कर-धागा देता सदा,जीवन को नव रंग ।।
– नीलम खरे